दुनिया की दो-तिहाई अक्षय ऊर्जा चीन में बन रही है
१५ जुलाई २०२४ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में चीन में 339 गीगावाट क्षमता निर्माणाधीन है, जिसमें 159 गीगावाट पवन और 180 गीगावाट सौर ऊर्जा शामिल है.
अमेरिकी थिंक टैंक ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर ने कहा है कि यह "बाकी दुनिया की कुल ऊर्जा क्षमता से लगभग दोगुनी है." मॉनिटर ने कहा कि यह आंकड़ा दूसरे स्थान पर मौजूद अमेरिका से भी बहुत अधिक है, जो कुल 40 गीगावाट क्षमता का ही निर्माण कर रहा है.
शोध में कहा गया है कि चीन की गति ने 2030 के अंत तक नवीकरणीय क्षमता को तीन गुना करने के वैश्विक लक्ष्य को "पहुंच के भीतर" ला दिया है, भले ही अधिक जलविद्युत के बिना भी ऐसा किया जा सके.
कोयले पर निर्भरता कम करना
चीन ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक है जो जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देती हैं. जीवाश्म ईंधन से कार्बन उत्सर्जन के मामले में चीन सबसे ऊपर है. वह कुल उत्सर्जन के 31 फीसदी के लिए जिम्मेदार है.
लेकिन चीन की बढ़ती नवीकरणीय क्षमता ने कोयले की उत्पादन हिस्सेदारी को नए निचले स्तर पर पहुंचा दिया है. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले इस देश ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को चरम पर पहुंचाने और 2060 तक नेट जीरो उत्सर्जन तक पहुंचने का संकल्प लिया है.
चीन की विशाल नवीकरणीय ऊर्जा उछाल की कुछ सीमाएं हैं, और राष्ट्रीय ग्रिड बिजली की बढ़ती मांग से निपटने के लिए भारी प्रदूषण फैलाने वाले कोयला संयंत्रों पर निर्भर है.
चीन इस बात पर भी विचार कर रहा है कि अपने सुदूर उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में पैदा हुई नवीकरणीय ऊर्जा को पूर्व के आर्थिक और आबादी वाले केंद्रों तक कैसे पहुंचाए.
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पवन और सौर ऊर्जा पर चीन का जोर
हालांकि ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की संयुक्त पवन और सौर ऊर्जा क्षमता इस साल कोयले से आगे निकल जाएगी.
कार्बन ब्रीफ के 11 जुलाई को प्रकाशित एक अलग विश्लेषण से पता चला है कि मई, 2024 में चीन ने अपनी कुल बिजली का 53 प्रतिशत हिस्सा कोयले से बनाया, जो देश के लिए रिकॉर्ड न्यूनतम है. मई 2023 में यह 60 प्रतिशत था.
एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ फेलो लॉरी माइलीविर्टा के किए विश्लेषण में बताया गया है कि रिकॉर्ड 44 प्रतिशत उत्सर्जन गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से हुआ है. इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि चीन में अगर यह प्रवृत्ति जारी रही देश के कार्बन उत्सर्जन का चरम बिंदु शायद 2023 ही रहेगा. अब आने वाले सालों में इसके नीचे जाने का सिलसिला बन सकता है.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)