क्या श्रीलंका वर्षों पुराने संकट से बाहर निकल सकता है
१६ अक्टूबर २०२३श्रीलंका पिछले कुछ साल से कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रहा है. देश में आर्थिक संकट के कारण भोजन, बिजली और ईंधन की कमी हो गई है. साल 2022 में, श्रीलंका अपने कर्ज चुकाने के दायित्वों से चूक गया, जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ उसे तीन अरब यूरो का बेलआउट सौदा करना पड़ा है.
श्रीलंका में प्वाइंट पेड्रो इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट के अर्थशास्त्री और शोधकर्ता मुत्तुकृष्णा सर्वानाथन कहते हैं कि आवश्यक वस्तुओं की किल्लत तो कम हो गई है लेकिन भूख और गरीबी बढ़ रही है. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "खाद्य मुद्रास्फीति सहित आधिकारिक मुद्रास्फीति के आंकड़ों में भारी गिरावट आई है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आवश्यक खाद्य पदार्थों की कीमतें बहुत अधिक हैं जो आबादी के बड़े हिस्से की पहुंच से बाहर हैं.” हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका की गरीबी दर साल 2021 में 13 फीसदी थी जो 2022 में बढ़कर 25 फीसदी हो गई.
श्रीलंका में आर्थिक एवं राजनीतिक उथल-पुथल
साल 2022 में जब श्रीलंका में आर्थिक संकट चरम पर था, उस दौरान श्रीलंका के लोग शासन में बदलाव और भ्रष्टाचार को समाप्त करने की मांग करते हुए सड़कों पर उतर आए थे. श्रीलंकाई थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी अल्टरनेटिव्स की मानवाधिकार वकील और रिसर्चर भवानी फोन्सेका कहती हैं, "एक साल बाद भी, इन मांगों को अभी तक पूरी तरह से महसूस नहीं किया गया है और समाज के वर्गों में निराशा है. आईएमएफ कार्यक्रम में कुछ महीने लगने के बावजूद, चुनौतियां लगातार बनी हुई हैं.”
हालांकि श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे कहते हैं कि वह ये बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और उन्होंने कर प्रशासन में लीकेज को दूर करने और कर दायरे के विस्तार की दिशा में कदम उठाए हैं. श्रीलंका की संसद में इस समय एक नए भ्रष्टाचार विरोधी विधेयक पर भी बहस चल रही है. सर्वनाथन कहते हैं, "यदि इन उपायों पर ईमानदारी से अमल किया जाता है तो भी इनका असर दिखने में काफी समय लगेगा. पिछले चालीस वर्षों या उससे भी ज्यादा समय से कर चोरी श्रीलंका के आर्थिक शासन की मानसिकता का हिस्सा रही है. थोड़े समय में इस पर काबू पाना कठिन है.”
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श्रीलंका के अर्थशास्त्र थिंक टैंक वेराइट रिसर्च के कार्यकारी निदेशक निशान डी मेल कहते हैं कि श्रीलंका का संकट ‘सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, शासन का संकट है.' डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहते हैं, "यह वही है जो आर्थिक संकट का कारण बना और आर्थिक संकट को लंबा खींचता है. शासन परिवर्तन को ठीक किए बिना आर्थिक परिवर्तन को ठीक करने का प्रयास, श्रीलंका को उस व्यक्ति की तरह बना देगा जिसने अपना घर रेत पर बनाया हो. इसके टिकाऊ होने की संभावना नहीं है.”
वेराइट रिसर्च के मुताबिक, सितंबर के अंत तक आईएमएफ कार्यक्रम की 71 प्रतिबद्धताओं में से केवल 40 के ही पूरे होने की पुष्टि हुई है, खासकर, पारदर्शिता, प्रशासन और राजस्व में सुधार के संबंध में. थिंक टैंक का ‘आईएमएफ ट्रैकर' आईएमएफ बेलआउट कार्यक्रम में श्रीलंका की प्रतिबद्धताओं की प्रगति को मापता है.
वेराइट रिसर्च के डी मेल का मानना है कि कार्यक्रम के तहत श्रीलंका अपने कार्यों में तेजी से गैर-पारदर्शी हो गया है. वो कहते हैं, "सितंबर 2023 तक, पूरी होने वाली लगभग 30 फीसदी प्रतिबद्धताओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है.” उन्होंने कहा, "पारदर्शिता पर चार प्रतिबद्धताओं में से तीन को पूरा नहीं किया गया है. हालांकि इनमें एक अपवाद भी है- आईएमएफ द्वारा संकलित किए गए शासन के लक्षणों को प्रकाशित करना.” उनका ये भी मानना है कि आईएमएफ अपनी आर्थिक सुधार योजनाओं को लेकर अधिक पारदर्शी हो सकता था.
भूख और गरीबी के कारण श्रीलंका में स्कूल छोड़ रहे बच्चे
डी मेल ने डीडब्ल्यू को बताया, "श्रीलंका में संसद के सदस्य भी यह नहीं जान पाए कि आर्थिक सुधार कार्यक्रम कैसे तैयार किया गया था. जबकि इसे आईएमएफ बोर्ड द्वारा पहले ही मंजूरी दे दी गई थी. यह लोकतांत्रिक संस्था के साथ ज्यादती है, उसका दमन है.”
आईएमएफ की नवीनतम किश्त में देरी हुई
सितंबर के अंत में, आईएमएफ ने कहा कि वह संभावित राजस्व कमी को लेकर श्रीलंका के साथ कर्मचारी-स्तरीय समझौते पर पहुंचने में असमर्थ है. ऐसा कोई समझौता होने तक 333 मिलियन डॉलर की अगली किश्त जारी नहीं की जाएगी. श्रीलंका के लिए आईएमएफ के वरिष्ठ मिशन प्रमुख पीटर ब्रॉयर ने आईएमएफ के पहले समीक्षा मिशन के बाद सितंबर के अंत में कहा था कि ‘राजस्व बढ़ाने और बेहतर प्रशासन का संकेत देने के लिए कर प्रशासन को मजबूत करना, कर छूट को हटाना और सक्रिय रूप से कर चोरी को खत्म करना महत्वपूर्ण होगा.'
श्रीलंका सरकार ने राजस्व की इस कमी को दूर करने के लिए करों में वृद्धि की है. वेराइट रिसर्च के डी मेल इस कदम की आलोचना करते हैं. वो कहते हैं, "कर आधार बढ़ाने के बजाय, सरकार ने श्रीलंका में कर चुकाने वाली चुनिंदा कंपनियों और लोगों पर कर की दरें बढ़ा दी हैं. उन्होंने राजस्व बढ़ाने के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ आईएमएफ कार्यक्रम के बीच में होने के बावजूद, विशिष्ट फर्मों, विशिष्ट निवेशकों और विशिष्ट एकाधिकार उद्योगों के लिए कई नए, लक्षित, कर अवकाश, कर छूट और कर कटौती भी पारित की है.”
हालांकि आईएमएफ ने एक बयान में यह कहा कि श्रीलंका ने ‘मुश्किल लेकिन बहुत जरूरी सुधारों' को लागू करने में ‘सराहनीय प्रगति' की है. बयान में कहा गया है कि ‘ये प्रयास फलदायी हो रहे हैं क्योंकि अर्थव्यवस्था स्थिर होने के अस्थायी संकेत दिखा रही है.'