चीन और बलोचों के बीच फंसा पाकिस्तान
१६ जुलाई २०२१प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले हफ्ते कहा था कि वह बलूचिस्तान प्रांत में "अलगाववादियों से बात करने" पर विचार कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "देश के इस पश्चिमी प्रांत का विकास तभी हो सकता है जब इलाके में शांति हो. अगर इस इलाके में विकास का काम होता, तो हमें कभी भी अलगाववादियों को लेकर चिंता नहीं करनी पड़ती." खान ने यह बयान बलूचिस्तान के ग्वादर शहर की अपनी यात्रा के दौरान दिया है. यह शहर चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का केंद्र है. सीपीईसी चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) से जुड़ी अरबों डॉलर की परियोजना है.
पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में विकास की कई परियोजनाएं शुरू की थीं. इनके बावजूद, यह देश का सबसे गरीब और सबसे कम आबादी वाला प्रांत है. पिछले कई दशकों से यहां अलगाववादी समूह सक्रिय हैं. ये समूह इस इलाके को पाकिस्तान से अलग करने की मांग कर रहे हैं. इनका आरोप है कि देश की सरकार उनके संसाधनों का गलत तरीके से इस्तेमाल कर रही है और उनके लोगों का शोषण किया जा रहा है. पाकिस्तान की सरकार ने इन विद्रोहियों और अलगाववादियों के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए 2005 में सैन्य अभियान शुरू किया था. फिर भी, इस इलाके के हालात पहले की तरह ही हैं.
तस्वीरों मेंः पर्दा, फैशन या मजबूरी
वर्ष 2015 में चीन ने पाकिस्तान में 50 बिलियन डॉलर से अधिक की एक आर्थिक परियोजना की घोषणा की थी. बलूचिस्तान इस परियोजना का अभिन्न हिस्सा है. सीपीईसी के ज़रिए, चीन का लक्ष्य पाकिस्तान और एशिया के अन्य देशों में अपना दबदबा बढ़ाना है. साथ ही, भारत और अमेरिका का मुकाबला करना है. सीपीईसी, पाकिस्तान के बलूचिस्तान में अरब सागर के किनारे स्थित ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ेगा. इसमें चीन और मध्य पूर्व के बीच संपर्क में सुधार के लिए सड़क, रेल और तेल पाइपलाइन लिंक बनाने की योजना भी शामिल है. हालांकि, बलूचिस्तान के अलगाववादी और कुछ स्थानीय नेता चीन के इस निवेश का विरोध कर रहे हैं.
‘अच्छी पहल'
कराची में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ डॉ. तलत ए विजारत ने बलोच अलगाववादियों के प्रति इमरान खाने के नजरिए में हुए बदलाव का स्वागत किया है. वह कहते हैं, "इस प्रस्ताव से बलूचिस्तान में विकास के एक नए युग की शुरुआत हो सकती है. यह एक अच्छी पहल है. बलूचिस्तान में शांति स्थापित होने से चीन यहां और ज्यादा निवेश कर सकता है." इस्लामाबाद में रहने वाली विश्लेषक डॉ. सलमा मलिक का मानना है कि प्रधानमंत्री को काफी पहले ही अलगाववादियों से संपर्क करना चाहिए था. वह कहती हैं, "अब थोड़ी देर हो चुकी है. हालांकि, अभी भी इस पहल का स्वागत होना चाहिए."
बलूचिस्तान के अलगाववादियों में चरमपंथी और राजनीतिक समूह दोनों शामिल हैं. दोनों इस इलाके में चीन की बढ़ती गतिविधियों का विरोध कर रहे हैं. उनका यह भी मानना है कि बातचीत को लेकर खान का इरादा सही नहीं है. उनका इरादा अशांत प्रांत में चीन की परियोजनाओं को स्थापित कराना है.
देखिएः कहां कहां हैं सीमा विवाद
पूर्व सांसद यास्मीन लहरी का कहना है कि चीन बलूचिस्तान में सुरक्षा स्थिति को लेकर चिंतित है. वह कहती हैं, "चीन दुनिया के कई इलाकों में विकास की परियोजनाएं चला रहा है, लेकिन उसे किसी भी जगह उतने खतरों का सामना नहीं करना पड़ रहा है जितना पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में करना पड़ रहा है." विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की चिंताओं की वजह से पाकिस्तान की सरकार का बलोच अलगाववादियों के प्रति नजरिया बदला है.
कराची में रहने वाले विश्लेषक डॉ. तौसीफ अहमद खान लहरी की बातों का समर्थन करते हैं. वह कहते हैं, "चीन चाहता है कि वह बलूचिस्तान में जो निवेश कर रहा है वह सुरक्षित रहे. इसलिए, इन स्थितियों से निपटने के लिए चीन इमरान खान की सरकार पर दबाव बना रहा है और पाक सरकार दबाव में है."
चीन के खिलाफ गुस्सा
बलूचिस्तान की प्रांतीय सरकार के पूर्व प्रवक्ता जान मुहम्मद बुलेदी का कहना है कि बलूचिस्तान में कई चीनी परियोजनाओं को सुरक्षा से जुड़े खतरों का सामना करना पड़ रहा है. बुलेदी का कहना है कि बलूचिस्तान में चीन के खिलाफ बहुत गुस्सा है. स्थानीय लोगों का मानना है कि ग्वादर बंदरगाह और सीपीईसी से संबंधित अन्य परियोजनाएं उनके लिए फायदेमंद नहीं रही हैं.
पाकिस्तान के एक प्रमुख अर्थशास्त्री कैसर बंगाली भी इस बात पर सहमत हैं. वह कहते हैं, "बलोच लोगों का मानना सही है कि इन समझौतों और चीनी परियोजनाओं से उन्हें कुछ नहीं मिला है. चीन ग्वादर बंदरगाह से होने वाली आमदनी का 91 प्रतिशत हिस्सा खुद लेता है और बाकी पाकिस्तान की केंद्रीय सरकार को जाता है.
ग्वादर में स्थानीय लोगों के पास पीने का साफ पानी तक नहीं है." बंगाली कहते हैं कि ग्वादर में सिर्फ चीनी लोगों के लिए आवासीय परिसर बनाए गए हैं. बलूचिस्तान विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को भी इन परिसरों में जाने की अनुमति नहीं है.
सशस्त्र विद्रोह का सामना
स्थानीय लोगों के पास अपना गुस्सा निकालने के लिए कुछ राजनीतिक रास्ते हैं. वहीं दूसरी ओर, सशस्त्र विद्रोहियों ने न केवल प्रांत में, बल्कि पूरे देश में चीनी परियोजनाओं और ठिकानों को नुकसान पहुंचाने की प्रतिज्ञा ली है. अगस्त 2018 में, एक आत्मघाती हमलावर ने बलूचिस्तान के दलबादीन में चीनी इंजीनियरों को ले जा रही एक बस को निशाना बनाया था. इस हमले में तीन चीनी नागरिकों सहित पांच लोग घायल हो गए थे.
देखिएः पाकिस्तान में हिंदू मंदिर
नवंबर 2018 में, एक बलोच विद्रोही समूह ने कराची शहर में चीनी दूतावास पर हमले की जिम्मेदारी ली थी. इस हमले में चार लोग मारे गए थे. मई 2019 में, अलगाववादियों ने ग्वादर में पर्ल कॉन्टिनेंटल होटल पर हमला किया था. इसमें पांच लोग मारे गए थे और छह लोग घायल हो गए थे. जून 2020 में, सशस्त्र अलगाववादियों ने पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज पर हमला किया था. इस स्टॉक एक्सचेंज में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी तीन चीनी कंपनियों के पास है.
चीनी ठिकानों पर हमला करने के अलावा, बलोच विद्रोही नियमित रूप से पाकिस्तान के सुरक्षा बलों, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, और उदारवादी बलोच राजनेताओं को भी निशाना बनाते हैं. साथ ही, उन गैर-बलोच मजदूरों को भी निशाना बनाते हैं जो चीन या पाकिस्तान की तरफ से संचालित विकास परियोजनाओं पर काम करते हैं.
क्यों जरूरी है चीनी निवेश?
चीन के आर्थिक निवेश के समर्थकों का तर्क है कि पाकिस्तान को विदेशी निवेश की जरूरत है. चीन अब तक पाकिस्तान का एक विश्वसनीय भागीदार साबित हुआ है. प्रधानमंत्री इमरान खान के आर्थिक परिषद के सदस्य अशफाक हसन ने डॉयचे वेले को बताया, "पाकिस्तान विरोधी तत्व चीन पर झूठे आरोप लगा रहे हैं. हम उनके साथ इसलिए अनुबंध करते हैं क्योंकि वे हमारे देश में निवेश करते हैं. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कोरोनावायरस महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुई है. चीनी निवेश से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी. साथ ही, बलूचिस्तान को भी फायदा होगा."
पाकिस्तान के कई प्रमुख व्यवसायियों का कहना है कि चीनी निवेश से देश में हजारों नौकरियां पैदा हुई हैं और सहायक परियोजनाओं से हजारों लोगों को लाभ हुआ है.