चपला, चंचला, चोलिता
दक्षिण अमेरिकी देश बोलिविया में महिलाओं की कुश्ती बड़ी मशहूर है. स्कर्ट पहन कर कुश्ती करने वाली 'चोलिता' अपने प्रतिद्वंद्वी को ही नहीं समाज में मौजूद कई तरह के भेदभाव को भी पटखनी दे रही हैं.
WWE से भी पुरानी
बोलिविया में महिलाओं की इस फ्री स्टाइल रेसलिंग को 'फाइटिंग चोलिताज' कहा जाता है. माना जाता है कि बोलिविया के अल आल्तो इलाके में इसकी शुरुआत 19वीं शताब्दी में हुई.
परंपरागत पोशाक
कुश्ती के खास कपड़ों के उलट फाइटिंग चोलिता अपनी पारंपरिक पोशाक पहन कर लड़ती हैं. ग्रीक-रोमन शैली की यह कुश्ती लड़ने वाली महिलाएं लात और घूसों से कोई परहेज नहीं करतीं.
बेदम करने तक
लुचा लिब्रे समुदाय की महिलाओं के बीच होने वाली इस फाइट में प्रतिद्वंद्वी को बेदम करना होता है. मुकाबला चित करने या फिर प्रतिद्वंद्वी के हार मानने पर ही खत्म होता है.
अखाड़े के बाहर भी अखाड़ा
मुकाबले के दौरान अगर कोई फाइटर अखाड़े से बाहर भी चली जाए तो उसका पीछा किया जाता है और खास सीमा के अंदर उसे पटखनी दी जाती है. अगर कोई मैदान छोड़ दे तो उसे हारा घोषित किया जाता है.
कहां फंस गया
कभी कभार लड़ाई के दौरान महिलाएं इतनी आक्रामक हो जाती हैं कि वह पुरुष रेफरी को भी नहीं बख्शती हैं. कई लोगों का मानना है कि अमेरिका की WWE रेसलिंग बोलिविया की फाइटिंग चोलिताज की नकल है.
संडे के संडे
इस फ्री स्टाइल रेसलिंग के लड़ाकों को 'टाइटन्स ऑफ द रिंग' कहा जाता है. इसमें महिला और पुरुषों की अलग अलग श्रेणी होती है. मुकाबले हर इतवार होते हैं.
जीत की हुंकार
विजयी महिला को करीब 30 डॉलर तक का ईनाम मिलता है. रेसलिंग करने वाली ज्यादातर महिलाएं सोमवार से शनिवार तक दूसरे काम करती हैं.
दशकों चला अपमान
बोलिविया की मूल निवासी यह महिलाएं अपने लंबी स्कर्ट, खास हैट और बड़े गहनों वाले पहनावे के कारण दूर से पहचान में आ जाती थीं. कई दशकों तक चोलिता को कई सार्वजनिक जगहों पर जाने की मनाही रही.
पहलवानी से सशक्तिकरण
रेसलिंग के कारण चोलिता को एक नई पहचान मिली. पहले जिन्हें घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार का शिकार बनना पड़ता था, आयमारा और ऐसे मूल समुदायों की महिलाएं रेसलर बन कर अपने को सशक्त बना रही हैं.
ऐसे पता चली कहानी
फाइटिंग चोलिताज नाम की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म के जरिये बोलिविया की यह कहानी दुनिया के सामने आई. 2006 में बनी उस डॉक्यूमेंट्री फिल्म को सम्मानित भी किया गया.