जब से इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से कम ही मौके ऐसे आए जब उन्होंने भारत की तारीफ की हो. वरना जिस तरह का उनका गर्म मिजाज है, उसके चलते तो हमेशा भारत और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके निशाने पर ही रहे. अपने ताजा बयान में उन्होंने मोदी का नाम तो नहीं लिया है, लेकिन अभी तो भारत की तारीफ प्रधानमंत्री मोदी की ही तारीफ मानी जाएगी. लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हो जाती. जिस तरह उन्होंने भारत की तटस्थ विदेश नीति की तारीफ करते हुए पाकिस्तान की विदेश नीति पर सवाल उठाए हैं, उससे बहुत कुछ साफ होता है. इमरान खान ने कहा कि भारत का अमेरिका के साथ भी गठबंधन है और वह रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद उससे तेल खरीद रहा है. वह तो यहां तक कह गए भारतीय विदेश नीति अपने लोगों की बेहतरी के लिए है जबकि पाकिस्तान में ऐसा नहीं है.
इमरान खान के बयान से साफ है कि वह पाकिस्तान की विदेश नीति से खुश नहीं हैं. देश की विदेश नीति को निशाना बनाकर उन्होंने सीधे सीधे देश की ताकतवर सेना पर उंगली उठाई है, क्योंकि पाकिस्तान में सेना को ही देश की विदेश नीति का कर्ताधर्ता माना जाता है. पाकिस्तान में जब कोई प्रधानमंत्री सेना को चुनौती देने लगे, तो फिर उसका सत्ता में रहना मुश्किल होता जाता है. जो लोग पाकिस्तान और उसकी सियासत को जानते हैं, उन्हें पता है कि वहां सेना की इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिलता.
पाकिस्तान में सियासत, समाज और अर्थव्यवस्था पर जिस तरह पाकिस्तानी सेना का वर्चस्व है, उसकी मिसाल दुनिया के कम ही देशों में मिलेगी. पाकिस्तान में सेना सिर्फ देश की सरहदों की हिफाजत नहीं करती, बल्कि उससे जुड़े बहुत सारे व्यापारिक प्रतिष्ठान भी हैं जो सीमेंट से लेकर, खाद, साबुन और कॉर्न फ्लेक्स तक सब कुछ बनाते हैं. यहां तक कि फिल्में और सीरियल भी पाकिस्तानी सेना बनाती है. इसीलिए तो कहते हैं कि दुनिया के हर देश के पास एक सेना है लेकिन पाकिस्तान में सेना के पास एक देश है.
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सेना और सियासत के रिश्ते
पाकिस्तान बनने के बाद से ही सेना ने कभी जनता की नजरों में किसी राजनेता को चढ़ने ही नहीं दिया. जिसने भी सेना की मर्जी के खिलाफ सियासी फलक पर छाने की कोशिश की, उसे साफ कर दिया गया. सेना ने बीते 70 साल में देश की जितनी भी नाकामियां हैं, उन्हें राजनेताओं के खाते में रखा और जितनी भी कामयाबियां हैं उनका सेहरा अपने सिर बांधा है. इसीलिए जनता की नजरों में ज्यादातर 'राजनेता चोर हैं जबकि सेना देश की रक्षक है.'
खासकर विदेश नीति के मामलों में हमेशा आखिरी फैसला पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय में हुआ है. ऐसे में, भारत के साथ दुश्मनी और हथियारों की होड़ में टिके रहने के लिए पाकिस्तानी सेना को जो जरूरी लगा, उसने किया. और इस काम में विदेश नीति को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया. बीते चालीस साल में पाकिस्तान ने विदेश नीति के मोर्चे पर किस कदर कलाबाजियां लगाई हैं कि पूछिए मत. खासकर अफगानिस्तान में, आप कभी तालिबान के दोस्त थे, फिर उस पर बम बरसाने वाले अमेरिका के साथी बन गए, अमेरिका अफगानिस्तान से निकला तो फिर पाकिस्तान तालिबान के पीछे खड़ा नजर आता है. इसकी कीमत पाकिस्तान ने सैंकड़ों आतंकवादी हमलों में अपने हजारों लोगों की जान देकर चुकाई. लेकिन अरबों डॉलर भी तो उसकी झोली में आए.
कहां हुई गड़बड़
पाकिस्तानी सेना अब भी पश्चिमी देशों और खासकर अमेरिका के साथ अपने रिश्ते रखना चाहती है. लेकिन इमरान खान पाकिस्तान में मौजूद अमेरिका विरोधी भावनाओं को अपनी राजनीतिक पूंजी समझते आए हैं. इसीलिए वह कई बार राजनीति और कूटनीति से जुड़ी ऐसी बातें भी खुलेआम मंचों से कह देते हैं, जो पर्दे में रखी जाती हैं. सियासत और खास तौर से सत्ता में रहते हुए इतनी साफगोई अकसर चल नहीं पाती. खासतौर पर तब, जब आपके ऊपर भी कोई है जो चीजों को तय कर रहा है. इमरान खान के तेवरों को देखकर अकसर लगता है कि जैसे वह अब भी सरकार में नहीं, बल्कि विपक्ष में ही हैं. लेकिन उनकी ऊर्जा का देश को कोई खास फायदा नहीं मिला. अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के उनके वादों की फूंक कब की निकल चुकी है. आईएमएफ से कर्ज भी लेना पड़ा, जिसके वह किसी जमाने में बड़े खिलाफ हुआ करते थे. महंगाई आसमान को छू रही है. आम लोग परेशान हैं.
इन हालात में सेना की शायद इमरान खान में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई है. लगता है कि अब देश के जनरल कुछ नया प्रयोग करने की सोच रहे हैं. जिस तरह इमरान खान की अपनी पार्टी के दर्जनों सांसद विपक्षी खेमे में खड़े दिख रहे हैं, उससे साफ है कि इमरान खान की सरकार का फैसला हो गया है. जब 25 मार्च को अविश्वास प्रस्ताव के लिए संसद का सत्र बुलाया जाएगा, तो इस पर मुहर भी लग सकती है. हालांकि पक्ष और विपक्ष, दोनों अपनी अपनी जीत दावे कर रहे हैं. लेकिन कप्तान साफ तौर पर बैकफुट पर नजर आ रहे हैं. बस वह अपने समर्थकों के सामने खरी-खरी सुना कर अपनी छवि को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, जिन्होंने 'नया पाकिस्तान' बनाने के नारे से प्रभावित होकर उन्हें वोट दिया था. नया पाकिस्तान तो नहीं बना, लेकिन हो सकता है कि देश को जल्द नया प्रधानमंत्री मिल जाए.