मेरा भाई ऑक्सीजन की कमी से मरा था!
२३ जुलाई २०२१रात होते ही फोन बंद हो जाने चाहिए. सोते से उठाने वाली फोन घंटी अक्सर दहला देने वाली होती है. उस रात यही हुआ था. फोन बजा तो आंख खुली. पापा का फोन था. तुरंत ध्यान घड़ी पर गया. मेरे यहां सिडनी में ढाई बज रहे थे. भारत की घड़ियों में भी 10 पार हो चुके थे. दिल कांप गया. हलो कहा तो वही हुआ जिसका डर था. विभु नहीं रहा, पापा ने डूबी हुई आवाज में बताया.
विभु मेरा बड़ा भाई था. मुझसे दो साल बड़ा. और हर बात में हम उसकी ओर देखते थे. वो नहीं रहा. कैसे? कोरोना हो गया था. विभु को कोरोना? पर दो दिन पहले तो ठीक था. न सिर्फ ठीक था बल्कि फेसबुक पर योग करते वीडियो डाल कर लोगों को बता रहा था कि इम्युनिटी बढ़ाओ तो कोरोना से बचे रहोगे. रोज योग और आसन करने वाला विभु हम सभी भाई बहनों में सबसे स्वस्थ और अनुशासित था. उसे कोरोना हो गया और ऐसा हुआ कि दो दिन में जान चली गई! कुछ समझ में नहीं आ रहा था. पापा ने कहानी सुनाई.
ऑक्सीजन के लिए अस्पतालों के चक्कर
शुक्रवार सुबह रैपिड टेस्ट के बाद पॉजीटिव आया तो अस्पताल में भर्ती कर लिया गया. शाम को उसने घरवालों को फोन किया कि यहां कोई देखभाल नहीं है, मुझे यहां से निकालो. सबसे बड़ा भाई उसके पास पहुंचा तो पता चला कि अस्पताल में ऑक्सीजन नहीं थी. 50 किलोमीटर दूर कोरोना स्पेशल अस्पताल में जाने को कहा गया. एंबुलेंस में उसे लिटाकर भाई 50 किलोमीटर दूर दूसरे अस्पताल पहुंचा. उन लोगों ने कहा कि उनके पास तो ना बेड है, ना ऑक्सीजन.
भाई की सरकार में खूब पहचान है. एक मंत्री से बात की गई. मंत्री ने सिफारिश की और 80 किलोमीटर और दूर एक तीसरे अस्पताल में बेड व ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम करवाया गया. रात को ही भाई एंबुलेंस में विभु को लेकर उस अस्पताल की ओर चला. रास्ते में सरकारी एंबुलेंस खराब हो गई. उसे वहीं छोड़ भाई ने कहीं से एक कार का इंतजाम किया. उसकी पिछली सीट पर तड़पते विभु को डाला गया. वह बार-बार कह रहा था – भाई सांस नहीं आ रही. सांस नहीं आ रही.
किसी तरह उसे तसल्ली देता हुआ भाई कार दौड़ाकर अस्पताल पहुंचा. पर सांस नहीं पहुंची. पता नहीं रास्ते में कब आखिरी सांस आ चुकी थी और जा चुकी थी.
ऑक्सीजन की कमी से मौत से बेखबर
भारत के स्वास्थ्य मंत्री ने संसद को, यानी कि देश को बताया है कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से ऐसी कोई सूचना नहीं मिली कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत हुई है. मंत्रीजी ने ट्वीट कर स्पष्ट किया है कि राज्यों से मिले आंकड़ों के आधार पर यह जवाब दिया गया है.
सही ही कह रहे होंगे. राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें बताएंगी ही नहीं कि ऑक्सीजन की कमी थी तो केंद्रीय मंत्री को कैसे पता चलेगा! विभु जब उस कार की पिछली सीट पर पड़ा ‘सांस नहीं आ रही' कह रहा था, तब दिक्कत ऑक्सीजन की कमी की कहां थी, कार की रफ्तार की थी, जो हवा में उड़कर जल्दी दूसरे अस्पताल नहीं पहुंच सकती थी. मेरे ख्याल से विभु की मौत की वजह एंबुलेंस की खराबी दर्ज हुई होगी. इसीलिए, उसकी मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई नहीं मानी गई.
पर मैं उन लोगों के बारे में सोच रहा हूं जो यहां ऑस्ट्रेलिया में भारत को ऑक्सीजन सिलेंडर भेजने के लिए धन जमा कर रहे थे. कई संस्थाओं ने करोड़ों रुपये जमा कर ऑक्सीजन कॉन्सन्ट्रेटर भेजे थे. शायद वे लोग दानिश सिद्दीकी की खींची तस्वीरों के कारण साजिश का शिकार हो गए होंगे, जो भारत की छवि खराब कर रही थीं.
विदेशी सरकारें भी भेज रही थीं मदद
पर क्या वे विदेशी सरकारें भी साजिश का शिकार हुईं, जिन्होंने ‘मुश्किल वक्त में भारत की मदद के लिए' साज ओ सामान भेजा? जब ऑक्सीजन की कमी से कोई मर ही नहीं रहा था तो अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया हजारों की तदाद में ऑक्सीजन सिलेंडर किसलिए भेज रहे थे? और भारत का विदेश मंत्रालय ट्विटर पर सबका शुक्रिया भी तो अदा कर रहा था. मंत्रालय ने उसी वक्त काहे नहीं उन सरकारों से कहा कि हमारे यहां ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मर रहा, हमें ऑक्सीजन कॉन्सन्ट्रेटर मत भेजो?
स्वास्थ्य मंत्री ने इतिहास में अपनी सरकार का नाम सुनहरी अक्षरों में लिख दिया है. सौ साल बाद जब इतिहास का कोई छात्र इस युग पर शोध कर रहा होगा तो संसदीय दस्तावेज खंगालेगा और कहेगा, भारत में ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा था. यह बात संसद के रिकॉर्ड में दर्ज है.
अब जिन लोगों ने सरकार को सफेद झूठ बोलते देखा-सुना है उनकी आवाज तो होगी नहीं सरकारी रिकॉर्ड में. पर झूठ बोलने से ऑक्सीजन की कमी दूर हो जाएगी क्या? लोगों का मरना बंद हो जाएगा क्या? सच बोलने का फायदा ये होता कि आप अपनी कमी मानते और उसे दूर करने की कोशिश करते. सरकार अपनी गलती मानती और वादा करती कि अगली बार ऑक्सीजन की कमी से किसी को नहीं मरने देंगे, तो मुझे विभु की मौत के बाद आया वो एसएमएस ना कचोटता.
उस दिन विभु की चिता जब जल रही थी, तब उसके फोन पर एक मेसेज आया था – बधाई हो, आप कोरोना पॉजीटिव नहीं हैं.