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चरम मौसम की वजह से बढ़ रहे पूर्वानुमान लगाने वाले कारोबार

३० सितम्बर २०२३

मौसम के पूर्वानुमान की मदद से कारोबार को नुकसान से बचाने और मुनाफा बढ़ाने में मदद मिल रही है. हालांकि, भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को इसका पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है. आखिर क्यों?

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पाकिस्तान में भीषण बाढ़
तस्वीर: Sajjad/Xinhua/IMAGO

पापुआ न्यू गिनी में मौसम कैसा है? स्विट्जरलैंड के सेंट गालेन स्थित निजी मौसम पूर्वानुमान कंपनी मेटियोमैटिक्स में पहुंचे एक व्यक्ति ने इस सवाल का जवाब जानना चाहा. इसकी वजह यह थी कि वह फ्रांस में पापुआ न्यू गिनी की जलवायु की तरह ही एक जगह तैयार करने की कोशिश कर रहा था, क्योंकि वह वहां इगुआना (बड़े आकार की शाकाहारी छिपकली) को पाल रहा था. मेटियोमैटिक्स के मार्केटिंग प्रमुख अलेक्जांडर स्टॉच ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह एक अजीब अनुरोध था.”

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मेटियोमैटिक्स को अक्सर ऐसे असामान्य अनुरोध मिलते रहते हैं. उनके मौसम पूर्वानुमान सॉफ्टवेयर और ड्रोन का इस्तेमाल दुनिया भर में त्योहार की योजनाएं बनाने, रक्षा उद्योग और अन्य कार्यों के लिए किया जाता है. ऐसे समय में जब चरम मौसम की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, मौसम के पूर्वानुमान का महत्व भी बढ़ रहा है.  

दुनिया भर की कई सरकारें अभी भी सार्वजनिक रूप से ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हालांकि, दूसरी ओर इस बात पर भी आम सहमति बढ़ रही है कि इंसानों को गर्म होती धरती और चरम मौसम की घटनाओं के हिसाब से खुद को ढालना होगा.

आर्थिक नुकसान से बचने के लिए पूर्वानुमान का सहारा

अभी तक ऐसी कोई तकनीक इजाद नहीं हो पायी है कि इंसान मौसम को नियंत्रित कर सके. हालांकि, वैज्ञानिक मौसम का पूर्वानुमान लगा सकते हैं और यह कई मामलों में काफी हद तक सटीक भी होता है. हाल के शोध से पता चला है कि आज अगले पांच दिनों के लिए लगाया जाने वाला अनुमान उतना ही सटीक है जितना 1980 के दशक में अगले एक दिन के लिए लगाया जाने वाला अनुमान सटीक होता था. मौसम पूर्वानुमान जान-माल को बचाने वाला एक महत्वपूर्ण औजार बन गया है. इसकी मदद से, चरम मौसम की स्थिति में सरकारों और कारोबारों को काफी ज्यादा आर्थिक नुकसान से बचाया जा सकता है.

क्यों गलत हो जाती हैं मौसम की भविष्यवाणियां?

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के 2023 के एक अध्ययन के मुताबिक, पिछली आधी सदी में बाढ़, चक्रवात और सूखे जैसे चरम मौसम से होने वाली इंसानी मौतों की संख्या में कमी आई है. इसकी वजह यह रही कि किसी बड़ी आपदा के आने से पहले ही उसका अनुमान लगा लिया गया और चेतावनी जारी कर उचित कदम उठाया गया.

विश्व बैंक की 2021 की एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि मौसम के डाटा को इकट्ठा करने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसका आदान-प्रदान करने से हर साल 5 अरब डॉलर से अधिक का अतिरिक्त सामाजिक आर्थिक लाभ मिलेगा. 

कंपनियां इस बात को पहले ही समझ चुकी हैं. जर्मनी की राष्ट्रीय रेलवे कंपनी डॉयचे बान ने डीडब्ल्यू को बताया कि वह बाढ़ और जंगल की आग से संबंधित बेहतर अनुमान लगाने के लिए अपने पूर्वानुमान पोर्टल में सुधार कर रही है. ये दो ऐसी प्राकृतिक आपदाएं हैं जो जर्मनी में पहले थोड़ी समस्याएं पैदा करती थीं, लेकिन अब बड़ा खतरा बनती जा रही हैं. 

लोकल स्तर पर मौसम की सही जानकारी बेहद कारगर साबित हो रही है
लोकल स्तर पर मौसम की सही जानकारी बेहद कारगर साबित हो रही हैतस्वीर: Andre M. Chang/ZUMA Wire/IMAGO

कंपनियों को पूर्वानुमान से फायदा

मौसम का पूर्वानुमान सिर्फ नुकसान की आशंका का पता लगाने के लिए नहीं किया जाता. मौजूदा समय में उपलब्ध तकनीक का इस्तेमाल करके मौसम के हिसाब से कारोबार के तरीके में बदलाव किया जा सकता है. जैसे, आपूर्ति श्रृंखला के बेहतर प्रबंधन के लिए, मौसम के डाटा का इस्तेमाल शिपिंग मार्ग चुनने में किया जा सकता है.

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स्टॉच का कहना है कि जापान की एक कार निर्माता कंपनी मौजूदा मौसम के आधार पर अपने कारखाने में ऊर्जा की खपत कम या ज्यादा करने के लिए, मेटियोमैटिक्स के तकनीक का इस्तेमाल करती है. 

वह आगे कहते हैं, "सबसे ज्यादा राजस्व ऊर्जा क्षेत्र से मिलता है, खासकर अक्षय ऊर्जा से, क्योंकि वे मौसम के सटीक डाटा पर काफी ज्यादा निर्भर हैं.” उदाहरण के लिए, पवन और सौर ऊर्जा के उत्पादन को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने के लिए यह पूर्वानुमान लगाना जरूरी है कि हवा की रफ्तार कितनी और किस दिशा में रहेगी. सूरज की रोशनी कैसी होगी. इसके हिसाब से ही टर्बाइन और पैनल को सेट किया जाता है. 

तूफान और भीषण बरसात का असर अक्षय ऊर्जा पर भी पड़ता है
तूफान और भीषण बरसात का असर अक्षय ऊर्जा पर भी पड़ता हैतस्वीर: ChrisxKridler/Image Source/imago images

बढ़ रही है स्थानीय डाटा की मांग

मेटियोमैटिक्स की स्थापना के 10 वर्ष पूरे हो चुके हैं. कंपनी का कहना है कि पिछले दो वर्षों में उसके ग्राहक दोगुने हो गए हैं और उसने हाल ही में अमेरिका में भी एक कार्यालय खोला है. कई अन्य कंपनियां भी मौसम पूर्वानुमान के क्षेत्र में दिलचस्पी दिखा रही हैं. 

यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फोरकास्ट्स (ईसीएमडब्ल्यूएफ) के पूर्वानुमान विभाग के प्रमुख फ्लोरियान पपेनबर्ग ने डीडब्ल्यू को बताया, "पिछले कुछ वर्षों में व्यावसायिक ग्राहकों की संख्या काफी बढ़ी है.” ईसीएमडब्ल्यूएफ एक अंतर-सरकारी संगठन है जो करीब अगले दो सप्ताह के लिए वैश्विक मौसम का पूर्वानुमान बताता है.

पपेनबर्ग ने बताया, "जब उद्योग की बात आती है, तो यहां खास मकसद के लिए विशेष ऐप्लिकेशन का इस्तेमाल किया जाता है. जैसे, आपको आठ अमेरिकी शहरों में फसल की उपज का पूर्वानुमान लगाना है, क्योंकि इसके आधार पर बाजार में अनाज की कीमतें तय होती हैं.”

उपभोक्ताओं की खरीदारी के रुझान का अनुमान लगाने के लिए खुदरा विक्रेता भी मौसम डाटा का इस्तेमाल कर रहे हैं. विक्रेताओं को ध्यान में रखकर चलाए गए मौजूदा कैंपेन में, पूर्वानुमान और तकनीकी कंपनी ‘द वेदर कंपनी' मौसम को ‘ओरिजनल इंफ्लूएंसर' बताती है. विज्ञापन में कहा गया है, "मौसम से यह प्रभावित होता है कि हम कैसा महसूस करते हैं, हम क्या करने की कोशिश करते हैं और क्या खरीदते हैं.”

लीबिया में भीषण बाढ़ की चेतावनी दी गई थी, लेकिन इसे नजरअंदाज किया गया
लीबिया में भीषण बाढ़ की चेतावनी दी गई थी, लेकिन इसे नजरअंदाज किया गयातस्वीर: Jamal Alkomaty/AP Photo/picture alliance

तकनीक तक पहुंच के मामले में पीछे छूट गईं कमजोर अर्थव्यवस्थाएं

मौसम के पूर्वानुमान से जुड़ी तकनीक में सुधार हुआ है, लेकिन पूरी दुनिया को एक समान रूप से इसका फायदा नहीं मिल रहा है. औद्योगिक देशों में पूर्वानुमान डाटा और तकनीक, विकासशील देशों की तुलना में बेहतर है. इससे एक अलग तरह की समस्या पैदा हो रही है, क्योंकि विकासशील देशों में भी चरम मौसम से नुकसान होने की ज्यादा संभावना होती है. 

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डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट के मुताबिक, 1970 के बाद से अधिकांश विकसित देशों में मौसमी आपदाओं के कारण उस देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 0.1 फीसदी से कम का आर्थिक नुकसान हुआ है. वहीं, सबसे कम विकसित देशों में 5 फीसदी से अधिक का नुकसान हुआ. कुछ देशों में यह नुकसान 30 फीसदी तक पहुंच गया है. वहीं, छोटे द्वीपीय देशों में कुछ आपदाओं के कारण जीडीपी के 100 फीसदी से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ. इससे यह साफ तौर पर जाहिर होता है कि पूर्वानुमान का डाटा कितना मायने रखता है. 

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खाद्य संकट से निपटने में मिल सकती है मदद

विश्व किसान संगठन (डब्ल्यूएफओ) में खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन पर कार्य समूह के सदस्य रवि कुमार ने डीडब्ल्यू को बताया, "किसान बेहद कठिन और विषम परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं.”

उदाहरण के लिए, भारत में कई किसान खेती छोड़कर दूसरे पेशे अपना रहे हैं, क्योंकि काफी ज्यादा बारिश और सूखे की वजह से खेती करना मुश्किल होता जा रहा है. वैश्विक खाद्य संकट के संदर्भ में यह एक चिंताजनक बात है. कुमार कहते हैं, "किसानों को बेहतर उपकरण और निर्देश की जरूरत है, ताकि वे पूर्वानुमान के डाटा के हिसाब से खेती करने के तरीके में सुधार कर सकें.”

स्थानीय स्तर पर भी पूर्वानुमान का डाटा उपलब्ध कराया जाता है, लेकिन कई विकासशील देशों में मौसम का डाटा इकट्ठा करने के लिए बेहतर बुनियादी ढांचा नहीं है. इससे पूर्वानुमान लगाने वाली कंपनियों के लिए इन क्षेत्रों में सेवाएं उपलब्ध कराना कठिन हो जाता है.

ईसीएमडब्ल्यूएफ का कहना है कि वह इन बाजारों के लिए अपनी सेवाएं काफी कम शुल्क में उपलब्ध कराता है. साथ ही, वह विकासशील देशों में पूर्वानुमान लगाने वाले लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए वार्षिक कार्यक्रम भी चलाता है, ताकि वे ईसीएमडब्ल्यूएफ के डाटा का बेहतर इस्तेमाल कर सकें.

वहीं दूसरी ओर, डब्ल्यूएफओ विकासशील देशों में किसानों के लिए बेहतर तकनीकी समाधान विकसित करना चाहता है. इसमें बेहतर पूर्वानुमान प्रणालियां शामिल हैं, जो स्थानीय भाषाओं में और इस्तेमाल में आसान इंटरफेस के साथ पेश की जाती हैं. इससे किसानों को फसल लगाने या मवेशियों की सुरक्षा करने में मदद मिलती है. हालांकि, इसके लिए पैसे चुकाने होते हैं. वहीं, रवि कुमार का भी कहना है कि जलवायु परिवर्तन के असर से बचने के लिए आर्थिक निवेश करना जरूरी है.

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