कैसे होता है सांसदों का निलंबन
२९ जुलाई २०२२संसद के सदस्यों के कई विशेषाधिकार होते हैं, लेकिन इसके बावजूद संसद से सांसदों के निलंबन की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. 26 जुलाई को राज्य सभा के 19 सदस्यों को "अनियंत्रित आचरण" के लिए पूरे मानसून सत्र की अवधि के लिए निलंबित कर दिया गया.
निलंबित सांसद इस फैसले के विरोध में संसद के परिसर में ही धरने पर बैठ गए. उन्होंने 50 घंटों तक परिसर में ही डेरा डाले रखा और सोशल मीडिया पर वहीं से तस्वीरें और वीडियो भी डाले. सांसदों ने पहले संसद परिसर के मैदान में धरना दिया और बाद में बारिश होने पर अंदर की तरफ डेरा डाल लिया.
नवंबर, 2021 में भी इसी तरह राज्य सभा से विपक्ष के 12 सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था. सितंबर, 2020 में भी आठ राज्य सभा सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था. हर बार निलंबित होने वाले सांसद अपने निलंबन का विरोध करते हैं, लेकिन यह एक तय प्रक्रिया और नियमों के तहत किया जाता है.
दोनों सदनों में "प्रक्रिया तथा कार्य संचालन" नियम होते हैं जिनकी मदद से पीठासीन अधिकारी सदन की कार्यवाही चलाते हैं. राज्य सभा में इनमें नियम 255 और 276 में निलंबन का प्रावधान हैं.
निलंबन की शर्तें
नियम 255 के तहत अगर सभापति की यह राय हो की किसी सदस्य का व्यवहार "घोर अव्यवस्थापूर्ण" है तो अध्यक्ष द्वारा उस सदस्य को तुरंत सदन से बाहर चले जाने का निर्देश दिया जा सकेगा.
इस नियम के तहत निलंबन अधिकतम दिन भर की कार्यवाही के लिए होता है. नियम 256 के तहत "सभापति के अधिकार की उपेक्षा" या "बार बार और जान बूझकर सभा के कार्य में बाधा डालने" के लिए निलंबन का प्रावधान है.
इसके तहत सभापति को इस सदस्य का नाम लेना होता है फिर अधिकारी द्वारा प्रस्ताव किए जाने पर सदन के सामने यह प्रश्न रखा जाता है कि उस सदस्य को सत्र की बाकी बची अवधि के लिए सदन से निलंबित कर दिया जाए. यह निलंबन सत्र की शेष अवधि तक के लिए होता है.
किसी भी तरह के निलंबन को सदन की अनुमति से कभी भी रद्द भी किया जा सकता है. समस्या यह है कि बीते कुछ सालों में सांसदों द्वारा संसद में गतिरोध पैदा करना बहुत आम हो गया है. सांसद किसी मांग पर अड़ जाते हैं, सरकार उसे नहीं मानने पर अड़ जाती है और सदन की कार्यवाही ठप हो जाती है.
ऐसे में दोनों सदनों में काम को सुचारू रूप से चलाने के लिए पीठासीन अधिकारी कड़े कदम उठा सकें इसीलिए ये नियम बनाए गए. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि संसद में अगर संवाद बढ़े और दोनों पक्ष एक दूसरे की बात सुनें तो निलंबन की नौबत ही नहीं आएगी.