काजीरंगा में आदिवासियों को हटाकर 5 स्टार होटल बनाने का विरोध
१४ जून २०२४भारत का काजीरंगा नेशनल पार्क एक सींग वाले गैंडों के सबसे बड़े घर के तौर पर पूरी दुनिया में मशहूर है. यहां कई आदिवासी संगठनों ने आरोप लगाया है कि सरकार बड़े होटलों के लिए उनकी जमीन का जबरन अधिग्रहण करने पर आमादा है.
वहीं, सरकार ने तमाम आरोपों को बेबुनियाद ठहराया है. विपक्षी कांग्रेस भी इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ आक्रामक है. इस मुद्दे पर ज्यादातर गैर-सरकारी संगठनों की चुप्पी पर भी सवाल उठ रहे हैं.
असम सरकार पर जबरन जमीन लेने का आरोप
राज्य सरकार ने सितंबर 2023 में हयात होटल्स के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. उससे पहले सरकार ने असम पर्यटन विकास निगम के एक प्रस्ताव को भी अनुमोदित किया था, जिसके तहत इलाके में ताज समूह का एक भव्य रिसॉर्ट खोला जाएगा.
असम सरकार ने कहा है कि हयात समूह, नेशनल पार्क के पास 30 एकड़ में करीब 100 करोड़ की लागत से 120 कमरों का एक आलीशान होटल खोलेगा. पर्यावरण कार्यकर्ता इस परियोजना पर सवाल उठा रहे हैं.
उनकी दलील है कि यह निर्माण जिस इलाके में होना है, वह यूनेस्को हेरिटेज साइट का हिस्सा है और जमीन का मालिकाना हक आदिवासियों के पास है. पर्यावरणविदों का आरोप है कि सरकार इस जमीन का जबरन अधिग्रहण करने का प्रयास कर रही है. वहीं असम सरकार के मुताबिक, संबंधित जमीन सरकारी है.
जैव विविधता में संपन्न काजीरंगा नेशनल पार्क
असम के नगांव और गोलाघाट जिले में 800 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला यह पार्क जैव विविधता के लिहाज से बेहद संपन्न है. दुनिया में एक सींग वाले गैंडों की कुल आबादी में से दो-तिहाई यहीं रहती है.
एक सींग वाले गैंडों के संरक्षण में कामयाबी
उत्तर में ब्रह्मपुत्र और दक्षिण में कार्बी-आंग्लांग की पहाड़ियों से घिरे काजीरंगा को वर्ष 1950 में वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी और 1974 में नेशनल पार्क का दर्जा मिला. इसकी जैविक और प्राकृतिक विविधताओं को देखते हुए यूनेस्को ने 1985 में इसे विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया. 2006 में इसे टाइगर रिजर्व भी घोषित किया गया था.
"सरकार हमें पुरखों की जमीन से उजाड़ने पर तुली है"
इस इलाके में रहने वालों को बीते दिनों एक सरकारी नोटिस मिला, जिसमें कहा गया है कि संबंधित जमीन असम पर्यटन विकास निगम की है. इसलिए उसे खाली करना होगा. पार्क से सटे कोहरा इलाके में आदिवासी किसान गुणधर ग्वाला समेत कइयों के मकान तोड़ दिए गए हैं. हयात समूह का प्रस्तावित होटल इसी इलाके में बनना है.
यहां करीब 65 आदिवासी किसान परिवार रहते हैं. गुणधर का आरोप है कि सरकार ने उनके मालिकाना हक को अवैध घोषित कर दिया है. वहीं, सरकार का दावा है कि इन लोगों ने गैरकानूनी तरीके से जमीन पर कब्जा किया है.
गुणधर ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमारे पुरखे दशकों से इस जमीन पर रहते आए हैं. अब सरकार हमें अपने पुरखों की जमीन से उजाड़ने पर तुली है. वह इस जमीन को हयात समूह को सौंपना चाहती है." गुणधर के पास करीब दो बीघा जमीन है. होटल बनने की स्थिति में उनसे यह जमीन छिन जाएगी. गुणधर सवाल करते हैं, "यह जमीन ही हमारी इकलौती पूंजी है. अगर यह हाथ से निकल गई, तो हम क्या खाएंगे?"
विकास के नाम पर आदिवासियों को उजाड़ने के आरोप
प्रस्तावित होटल परियोजना के खिलाफ कई स्थानीय संगठन लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. आदिवासियों के एक संगठन के संयोजक रमेन कुमार ग्वाला कहते हैं, "विकास के नाम पर पार्क के आसपास रहने वाले स्थानीय आदिवासियों को उजाड़ने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है. संबंधित इलाके में लोग कई पीढ़ियों से रह रहे हैं. उनको उजाड़ने की बजाय परियोजना के लिए किसी और जमीन का आवंटन किया जाना चाहिए."
रमेन ध्यान दिलाते हैं कि यह इलाका बेहद संवेदनशील है. वह आरोप लगाते हैं सरकार ने विकास के नाम पर तमाम नियमों की अनदेखी कर निजी कंपनी को जमीन सौंपने का फैसला किया है.
बाढ़ से बचने के लिए जानवर भी लेते हैं यहां शरण
प्रस्तावित होटल परियोजनाओं का विरोध करने वालों की एक और दलील है कि इससे एक ओर जहां सैकड़ों आदिवासी किसान विस्थापित हो जाएंगे, वहीं बाढ़ के दौरान ऊंचे स्थान पर जाने वाले जानवरों का रास्ता भी बंद हो जाएगा.
असम में बाढ़ के कारण विस्थापन का दर्द झेलते लोग
हर साल बाढ़ के दौरान काजीरंगा पार्क के ज्यादातर इलाके डूब जाते हैं. उस समय तमाम जानवर बाढ़ से बचने के लिए ऊंची जगहों पर शरण लेते हैं. गोलाघाट और कार्बी आंग्लांग जिले की सीमा पर स्थित यह जमीन जंगली जानवरों का प्राकृतिक कॉरिडोर भी है.
जिला प्रशासन इस जमीन को सरकारी संपत्ति बताती है. यह इलाका बोकाखात सब-डिवीजन के तहत है. स्थानीय सर्किल ऑफिसर चंपक डेका ने डीडब्ल्यू को बताया, "पर्यटन निगम से मिली सूचना के बाद हमने संबंधित लोगों को जमीन खाली करने के लिए नोटिस भेजा है. वहां गैर-कानूनी तरीके से कुछ मकान भी बने हैं. वह जमीन सरकारी है."
चाय बागान के मजदूर भी कर रहे हैं विरोध
हयात के अलावा टाटा समूह भी इलाके में एक भव्य रिसॉर्ट बना रहा है. इस परियोजना के विरोध में चाय मजदूरों की यूनियन 'असम चा मजदूर संघ' ने 31 मई को हाथीखुली चाय बागान में दो घंटे तक काम बंद रखा था. वह बागान टाटा समूह का ही है. कई जानकार आशंका जता रहे हैं कि प्रस्तावित परियोजनाओं से काजीरंगा के नाजुक ईको सिस्टम के अलावा स्थानीय किसानों की रोजी-रोटी पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा.
असम चा मजदूर संघ के एक प्रवक्ता दिलीप भुइयां ने डीडब्ल्यू से कहा, "बागान की करीब आठ एकड़ जमीन पर ताज होटल के निर्माण की योजना है. इसका सीधा असर मजदूरों की रोजी-रोटी पर पड़ेगा. चाय बागान ही नहीं बचेगा, तो मजदूर कहां जाएंगे."
प्रकृति और पर्यावरण के नजरिये से इलाके की संवेदनशीलता को रेखांकित करते हुए दिलीप कहते हैं, "यह बागान नेशनल पार्क से सटा है. बाढ़ के दौरान जंगली जानवर इस बागान से होकर ही सुरक्षित स्थानों पर जाते हैं. हम दशकों से जानवरों के साथ सह-अस्तित्व बनाकर रह रहे हैं, लेकिन सरकार इस संतुलन को बिगाड़ने पर तुली है. इस परियोजना के कारण इंसानों और जानवरों के बीच संघर्ष तेजी से बढ़ेगा."
असम में एक सींग वाले गैंडों का शिकार रोकने में कामयाबी
सुप्रीम कोर्ट ने निर्माण पर रोक लगाई थी
साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने पार्क में रहने वाले जानवरों के कॉरिडोर के तौर पर इस्तेमाल होने वाले इलाके की निजी जमीन में किसी भी तरह के निर्माण पर पाबंदी लगा दी थी. इससे पहले एक उच्च-स्तरीय केंद्रीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कॉरिडोर में कई निजी और सरकारी निर्माण किए गए हैं. इसी रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने उक्त निर्देश दिया था.
दिलीप भुइयां बताते हैं कि अदालती निर्देश की अनदेखी करते हुए उसके बाद भी कई निर्माण किए गए हैं. इसकी वजह से भी स्थानीय लोगों को बेघर होना पड़ा है. स्थानीय किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय कृषक समिति ने इस मामले में ज्यादातर गैर-सरकारी संगठनों की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए उनपर राज्य सरकार के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया है.
कांग्रेस ने कहा, आंदोलनकारियों का समर्थन करेंगे
असम की राजधानी गुवाहाटी में विपक्षी दल कांग्रेस, सरकार के इन फैसलों का विरोध कर रही है. पार्टी के सांसद गौरव गोगोई ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "इलाके में विकास के नाम पर पहले ही दर्जनों लोगों को विस्थापित होना पड़ा है. अब इन होटल परियोजनाओं से काजीरंगा का ईको सिस्टम तो प्रभावित होगा ही, इलाके में रहने वाले स्थानीय आदिवासियों की रोजी-रोटी भी छिन जाएगी."
गौरव गोगोई राज्य सरकार पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, "सरकार निजी कंपनियों को जमीन सौंपने पर तुली है. इसके लिए वह अपने लोगों के हितों की अनदेखी कर रही है." उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी इन परियोजनाओं के खिलाफ आंदोलन करने वालों का समर्थन करेगी.
दूसरी ओर, असम सरकार के एक प्रवक्ता ने दोहराया कि संबंधित जमीन सरकारी है, लेकिन इसके बावजूद सरकार वहां से हटने वाले लोगों को वैकल्पिक तौर पर कहीं और बसाने पर विचार कर रही है. उनको आर्थिक सहायता भी दी जाएगी, ताकि वे नए सिरे से काम शुरू कर सकें. हालांकि, उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि सरकार कितना मुआवजा देगी. यह भी साफ नहीं है कि अगर संबंधित जमीन सरकारी है, तो कथित अवैध अतिक्रमणकारियों को मुआवजा कैसे दिया जाएगा.
पर्यावरणविद दिनेश कुमार हाजरा कहते हैं, "काजीरंगा नेशनल पार्क से सटे संवेदनशील इलाके में किसी बड़ी परियोजना को अनुमति देना उचित नहीं है. वह भी तब, जब वह इलाका बाढ़ के दौरान जानवरों की सुरक्षा के लिए अहम हो. सरकार ने मुनाफे के लालच में शायद तमाम नियमों की अनदेखी की है. जानवरों के साथ ही साथ, इससे हजारों लोगों की रोजी-रोटी का सवाल भी जुड़ा है. पर्यटन और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी है."