तलाक को हथियार बना रही हैं अफगान महिलाएं
१४ अप्रैल २०१७नादिया ने अपने पति को छोड़ दिया. अफगानिस्तान के रुढ़िवादी और पुरूष प्रभुत्व वाले समाज में घरेलू हिंसा एक बड़ी समस्या है. लेकिन पहली बार ऐसी महिलाओं की संख्या बढ़ रही है जो अफगानिस्तान में तलाक को एक नए तरह के सशक्तिकरण के तौर पर इस्तेमाल कर रही हैं.
इस्लाम में तलाक की अनुमति है, लेकिन तभी जब इसके सिवाय कोई और विकल्प न बचे. यही नहीं, अपने पति से अलग होने वाली महिला को समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता.
नादिया अपने पति के बारे में बताती है, "वह हेरोइन लेता है, शराब पीता है. अब और मैं उसके साथ नहीं रह सकती." हालांकि नादिया के कबीले के बुजुर्गों ने कोशिश की कि वह अपने पति के पास चली जाए. लेकिन नादिया इसके लिए तैयार नहीं थी. वह अपने परिवार की पहली ऐसी महिला बनी जिसने तलाक मांगा. उधर नादिया का पति घर छोड़ कर चला गया और उसका कोई अता पता नहीं है.
नादिया अब संयुक्त राष्ट्र के विकास कार्यक्रम के तहत बनाए गए लीगल एड ग्रांट फैसिलिटी (एलएजीएफ) की मदद से तलाक लेने की कोशिश कर रही है. तलाक को लेकर अफगानिस्तान में राष्ट्रीय स्तर पर आंकड़े मिलने तो मुश्किल है, लेकिन एलएजीएफ का कहना है कि तीन साल के अंदर अफगानिस्तान में तलाक के मामलों में 12 प्रतिशत का इजाफा हुआ है.
मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच के एक रिसर्चर हैदर बार कहते हैं, "जो तलाकशुदा महिलाएं अपनी नई जिंदगी शुरू कर पायी हैं, वे अन्य महिलाओं के लिए आदर्श हैं. उन्होंने साबित किया है कि तकलीफ और शोषण देने वाली शादी में उम्र भर कैद रहने का कोई मतलब नहीं है."
दकियानूसी और महिला विरोधी सोच रखने वाले तालिबान को 2001 में सत्ता से बेदखल करने के बाद अब भी अफगानिस्तान में महिला अधिकारों के लिए बहुत किए जाने की जरूरत है. वहां तलाक के मामलों की संख्या से पता चलता है कि कितनी बड़ी लैंगिक खाई है जिसे पाटने की जरूरत है.
अफगानिस्तान में पुरूषों के लिए अपनी पत्नियों को तलाक देना बहुत आसान है. मुंह से तलाक बोलने भर से वह अपनी पत्नी की जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं. लेकिन महिलाओं को तलाक लेने के लिए अदालतों के चक्कर लगाने होते हैं. वह सिर्फ उत्पीड़न या पति द्वारा छोड़े जाने की स्थिति में ही तलाक ले सकती हैं. यही नहीं, तलाक के मामलों में महिलाओं की पैरवी करने वाले वकीलों को भी मौत की धमकियां दी जाती हैं.
महिलाओं में साक्षरता की कमी और पक्षपाती कानून भी तलाक चाहने वाली महिलाओं के लिए अड़चन बनते हैं. बार कहते हैं, "तलाक इस बात का साफ उदाहरण है कि अफगानिस्तान के कानून पुरूषों के हक में ज्यादा हैं." 22 साल की नफीसा जैसी कई महिलाएं अधर में लटकी हैं क्योंकि उनके पतियों ने उन्हें तलाक देने से ही इनकार कर दिया है. इसके अलावा स्वतंत्र रूप से रहने वाली तलाकशुदा महिलाओं को अफगान समाज में संदेह की नजर से देखा जाता है और उन्हें बुरा भला कहा जाता है.
एके/एमजे (एएफपी)