31 साल की गुलामी के बाद अपने परिवार से मिले भीम सिंह
२९ नवम्बर २०२४कई दशकों तक बाहर की दुनिया से कटे रहे भीम सिंह ने गाजियाबाद पुलिस को बताया है कि जिस फार्म पर उन्हें गुलाम बना कर रखा गया था वहीं पर मवेशी खरीदने आए एक व्यापारी ने उन्हें बचाया.
सिंह के मुताबिक उस व्यापारी को उनकी सारी बातें सुन कर अंदाजा हो गया था कि उनका घर गाजियाबाद में कहीं है. व्यापारी ने उनकी सारी बातें एक कागज पर लिखीं, वो कागज उन्हें पकड़ा कर गाजियाबाद पहुंचा दिया और उनसे कहा कि वो पुलिस या मीडिया के पास जाएं.
सिंह किसी तरह स्थानीय पुलिस स्टेशन पहुंचे और पुलिस अधिकारियों को सारी बात बताई. उन्हें यह याद था कि उनका अपहरण 1993 में किया गया था. उन्हें अपने माता-पिता का नाम भी याद था. चार दिनों की तलाश के बाद पुलिस ने सिंह के परिवार का पता लगा लिया.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सिंह की मां जब पुलिस स्टेशन पहुंची तो उन्होंने सिंह को नहीं पहचाना लेकिन उनके बेटे ने उन्हें पहचान लिया. उसके बाद उन्होंने उनके बेटे के शरीर पर निशानों के बारे में बताया, पुलिस ने जांच की और सिंह के शरीर पर उन निशानों को पाया.
इसके बाद परिवार को विश्वास हो गया कि यह भीम सिंह ही हैं. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कुछ रिश्तेदारों के कहने पर वो सिंह की डीएनए जांच के लिए भी तैयार हो गए हैं, लेकिन वो यह मान चुके हैं कि यह व्यक्ति ही उनका खोया हुआ भीम सिंह है.
गुलामी की यातनाएं
भीम सिंह का कहना है कि उन्हें अगवा करके पहले एक ऑटो में और फिर एक ट्रक में जैसलमेर ले जाया गया. उन्हें यह नहीं मालूम कि उन्हें जैसलमेर में कहां गुलाम बना कर रखा गया था.
उन्हें बस इतना मालूम है कि जिस व्यक्ति ने उन्हें बंधक बना कर रखा हुआ था, उसका नाम साई राम था. वह दिन भर सिंह को मवेशियों के रखरखाव के काम में लगाए रखता था. दिन में उन पर नजर रखी जाती और रात को उन्हें जंजीर से बांध दिया जाता.
उनके मुताबिक वो उन्हें बस चाय, रोटी और दाल खाने के लिए देता था और अक्सर मारता पीटता भी था. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक एक बार तो साई राम ने सिंह को इतना मारा कि उनके जबड़े की हड्डी और दाएं हाथ की हड्डी टूट गई.
उसके बाद उसने उनका इलाज भी नहीं कराया और उनकी हड्डियों में स्थायी विकृति हो गई. सिंह का कहना है कि उस फार्म के आसपास 30-40 किलोमीटर तक कोई सड़क तक नहीं थी, इसलिए वो कभी वहां से भाग नहीं पाए.
बच्चों का अपहरण और गुलामी है बड़ी समस्या
भारत के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक देश में हर साल 70,000 से भी ज्यादा बच्चे लापता हो जाते हैं, यानी हर आठवें मिनट में एक बच्चा. यह सरकारी आंकड़े हैं, यानी सिर्फ वो मामले जिनकी शिकायत पुलिस से की गई.
माना जाता है कि लापता बच्चों की असली संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है. बच्चे बेचे जाएं या लापता हो जाएं तो, उनमें से बड़ी संख्या में बच्चों की तस्करी की जाती है. उसके बाद उन्हें जबरदस्ती भीख मांगने, आधुनिक गुलामी और देह व्यापार जैसे धंधों में लगा दिया जाता है.
एनसीआरबी के आंकड़े दिखाते हैं कि देश में मानव तस्करी (बच्चों और वयस्कों) के जितने भी मामले हुए, उनके पीड़ितों को सबसे ज्यादा बंधुआ मजदूरी, देह व्यापार, घरों में काम और जबरन शादी में इस्तेमाल किया गया.
नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की बनाई कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) और गेम्स24x7 कंपनी के जुटाए आंकड़ों बताते हैं कि दिल्ली बाल तस्करी के लिए हॉटस्पॉट बन गई है.
रिपोर्ट के मुताबिक तस्करी से बचाए गए एक-चौथाई से अधिक बच्चे दिल्ली से आते हैं. आंकड़ों के मुताबिक 2016 से 2022 के बीच 18 साल से कम उम्र के 13,549 बच्चों को तस्करों से बचाया गया.
इसी के साथ आधुनिक गुलामी भी भारत में एक बड़ी समस्या बन रही है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और वॉक फ्री फाउंडेशन के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 80 लाख लोग आधुनिक गुलामी में फंसे हुए हैं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है.
वॉक फ्री फाउंडेशन आधुनिक दासता को कुछ इस तरह से परिभाषित करता है- जिसमें जबरन श्रम, ऋण दासता, जबरन विवाह, दासता, अन्य गुलामी-जैसी प्रथाएं, बच्चों की बिक्री और शोषण और मानव तस्करी शामिल हैं.
वॉक फ्री फाउंडेशन के मुताबिक "आधुनिक गुलामी दुनिया के हर कोने में अदृश्य और गहराई से जीवन में एकीकृत दोनों है. हर दिन लोगों को धोखा दिया जाता है, मजबूर किया जाता है या शोषण की स्थितियों में मजबूर किया जाता है जिसे वे नकार या छोड़ नहीं सकते."