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समाज

एक रुपया में पेट भर खाना

५ फ़रवरी २०२१

दिल्ली में एक व्यक्ति पिछले दो सालों से जरूरतमंदों का पेट मात्र एक रुपया में भर रहा है. जिन लोगों के पास एक रुपया होता है वे दे देते हैं और जिनके पास पैसे नहीं होते उनके लिए खाना मुफ्त होता है.

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तस्वीर: Aamir Ansari/DW

सुबह के 11 बजने वाले हैं और श्याम रसोई के बाहर भूखे लोगों की भीड़ धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है. स्टील की थाली हाथ में लिए बच्चे, जवान और बूढ़े कतार में लगे हुए हैं. वे बेसब्री से रसोई में तैयार गरमागरम रोटी, दाल, चावल, कढ़ी और सब्जियों के इंतजार में हैं. कुछ लोग बेरोजगार हैं तो कुछ पास में ही छोटी-छोटी फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिक हैं. बच्चे भी यह जानकार उत्साहित हैं कि उन्हें आज खाने के साथ दो तरह के हलवे मिलने वाले हैं.

मिलिए प्रवीण गोयल से, जिन्होंने एक रुपया में जरूरतमंदों को पेट भर खाना खिलाने का बीड़ा उठाया हुआ है. 51 साल के प्रवीण ने इस रसोई के लिए अपना बिजनेस छोड़ दिया और घर का पैसा भी लगा दिया. उन्हें इस काम के लिए परिवार का भरपूर समर्थन हासिल है.

Indien Neu-Delhi | Praveen Goyal spendet Essen für hungrige Menschen
बच्चे, जवान और बूढ़े हर रोज यहां खाना खाने आते हैं. तस्वीर: Aamir Ansari/DW

हर रोज तड़के रसोई में काम करने वाले कर्मचारी दिन के हिसाब से भोजन तैयार करने के काम में जुट जाते हैं. बड़े-बड़े भगोनों में दाल, चावल, तरी वाली सब्जी और हलवा तैयार किया जाता है. हजारों लोगों के लिए रोटी बनाने का विशेष इंतजाम है. तीन महिलाएं रोटी के लिए पेड़े तैयार कर रही हैं तो वहीं दूसरी ओर एक शख्स एक-एक कर उन पेड़ों को रोटी बनाने वाली मशीन में डाल रहा है. मशीन की दूसरी तरफ से फूली-फूली रोटियां एक एक करके निकल रही हैं. रोटी वैसी ही हैं जैसे घर पर बनाई जाती हैं. घंटों की मेहनत के बाद खाना लोगों को परोसने के लिए तैयार है.

कतार में लगे लोग अपनी जेब से एक रुपया का सिक्का एक डिब्बे में डालकर भोजन लेने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके पास पैसे नहीं है लेकिन उन्हें भी भोजन दिया जा रहा है. पिछले साल लॉकडाउन के दौरान बेरोजगार हुए कमला कांत पाठक बीते छह महीने से यहां रोजाना खाना खाने आते हैं. वो कहते हैं, "मेरे पास जब एक रुपया होता है तो मैं दे देता हूं लेकिन जिस दिन पैसा नहीं होता है मैं उस दिन बिना पैसा दिए खाना खाता हूं. बाहर पानी का गिलास भी दो रुपये में मिलता है. अगर ये एक रुपया में खाना खिला रहे हैं तो थोड़ी हैरानी होती है. एक रुपया में पौष्टिक और भरपूर खाना खिलाना इस महंगाई में नामुमकिन है."

Indien Neu-Delhi | Praveen Goyal spendet Essen für hungrige Menschen
थाली की कीमत सिर्फ एक रुपया है.तस्वीर: Aamir Ansari/DW

खाना लेने के बाद लोग जमीन पर बिछी दरी पर बैठकर खाना खा रहे हैं. कुछ लोगों का पेट एक बार खाना लेने के बाद भर जाता है लेकिन कुछ लोग दोबारा रोटी या चावल की मांग करते हैं तो उन्हें मना नहीं किया जाता है. प्रवीण कहते हैं, "साल के 365 दिन रसोई चलती है और रोजाना खाना बनता है. हमारे लिए किसी दिन छुट्टी नहीं है. हम किसी को खाना खाने से नहीं रोकते हैं, हम लोगों को भरपेट खाना खिलाते हैं. जिनके पास पैसे होते हैं वो देते हैं जिनके पास नहीं होते उन्हें भी खाना खिलाते हैं."

पिछले 10-12 दिनों से लगातार यहां खाना खाने आने वाले मदन बताते हैं कि उनका काम बंद है इसलिए वो यहां खाने आते हैं. मदन कहते हैं, "मेरे पास काम नहीं है और ना ही पैसे हैं, इसीलिए मैं यहां खाना खाने आता हूं. यहां मुझे अच्छा खाना खाने को मिलता है." मदन बताते हैं कि जिस दिन उनके पास एक रुपया होता है वह डिब्बे में डाल देते हैं लेकिन किसी दिन नहीं रहने पर वह बिना पैसे दिए भोजन करते हैं. कमला कांत और मदन जैसे सैकड़ों लोग हर रोज यहां आकर दोपहर का भोजन करते हैं.

Indien Neu-Delhi | Praveen Goyal spendet Essen für hungrige Menschen
प्रवीण गोयल के साथ कई आम लोग भी इस अभियान में शामिल हो रहे हैं. तस्वीर: Aamir Ansari/DW

प्रवीण इस रसोई के बारे में बताते हैं कि इसे चलाने का खर्च एक दिन में करीब 40 से 50 हजार रुपये हैं और यह पूरी तरह से दान पर चलती है. रसोई के बारे में जब जैसे लोगों को जानकारी मिल रही है उसी तरह से लोग मदद के लिए आगे आ रहे हैं. प्रवीण के मुताबिक, "लोग अब दूसरे राज्यों से इसके बारे में जानकारी मिलने के बाद सूखा राशन भी ऑनलाइन खरीद कर भेज रहे हैं." प्रवीण के साथ काम करने वाले रजीत सिंह कहते हैं कि जब लोग भरपेट खाना खाकर दुआ देते हैं तो उनका मन खुश हो जाता है. रजीत ने अपने गोदाम को रसोई और लोगों के बैठने के लिए मुफ्त में दे दिया है. रसोई में जो खाना बनता है उसका एक हिस्सा वृद्ध आश्रम और कुष्ठ रोगियों के आश्रम में भी जाता है.

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थाली की कीमत एक रुपया है, पैसे नहीं होने पर भी भोजन दिया जाता है. तस्वीर: Aamir Ansari/DW

प्रवीण और रजीत के साथ अब स्थानीय लोग भी इस नेक काम के लिए आगे आ रहे हैं. स्कूल और कॉलेज के छात्र भी खाली वक्त में आकर लोगों को खाना खिलाने में मदद करते हैं. दोपहर के खाने का समय एक बजे तक ही है लेकिन कई लोग इसके बाद भी यहां पहुंच कर खाना खा रहे हैं. प्रवीण का पूरा दिन अब इसी रसोई के प्रबंधन में और लोगों को खाना खिलाने में निकल जाता है. प्रवीण का कहना है कि एक रुपया लेने का मकसद लोगों को शर्मिंदा होने से बचाना है ताकि उन्हें लगे कि उन्होंने भोजन के लिए पैसे दिए हैं.

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