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750 रोहिंग्या मुसलमानों को इंडोनेशिया ने बचाया

१५ मई २०१५

समुद्री रास्ते से म्यांमार छोड़कर जाने वालों में से करीब 750 रोहिंग्या लोगों को इंडोनेशिया में बचा लिया गया. बड़ी तादाद में म्यांमार और बांग्लादेश छोड़ कर भाग रहे रोहिंग्या लोगों को लेकर कोई स्थाई उपाय नहीं निकल सका है.

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Asien Malaysia Flüchtlingskrise
तस्वीर: picture-alliance/dpa

कई हफ्तों तक समुद्र में बेसहारा छोड़े जाने के बाद सैकड़ों प्रवासियों को इंडोनेशिया और थाईलैंड के किनारों पर ले आया गया है. दक्षिणपूर्व एशिया के मलेशिया जैसे देशों के इंकार के बाद इन लोगों को शरण मिल पायी है. इनमें 750 से ज्यादा म्यांमार और बांग्लादेश के रोहिंग्या मुसलमान हैं. शुक्रवार को इंडोनेशियाई पुलिस के बताया कि म्यांमार दक्षिणपूर्व एशिया में मानव तस्करी के बड़े संकट को लेकर गंभीरता नहीं दिखा रहा. पुलिस को बचाए गए यात्रियों ने बताया कि किस तरह सुमात्रा द्वीप के पूर्वी तट पर उनकी नाव डूब गई. इसके पहले मलेशिया ने सैकड़ों यात्रियों से भरी नाव को लौटा दिया था. सामाजिक कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि इस समय दक्षिणपूर्व एशिया के समुद्र में करीब 8,000 शरणार्थी फंसे हुए हैं.

इसके पहले इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड ने भूखे बांग्लादेशियों और म्यांमार के रोहिंग्या लोगों की मदद से इंकार कर दिया था, जिसकी अमेरिका, सयुंक्त राष्ट्र समेत दुनिया भर से आलोचना हुई. इंडोनेशिया के आचेह प्रांत के लांग्सा शहर में ही यात्रियों को शरण दी गई है. इस नाव में सवार यात्रियों में 61 बच्चे भी थे, जो डूब रहे थे. इंडोनेशियाई मछुआरे इन्हें बचाकर किसी तरह किनारे तक ले आए. इनके अलावा इसी तट से कुछ दूर एक और नाव से पानी में कूद चुके करीब 47 यात्रियों को भी स्थानीय मछली पकड़ने वालों की मदद मिली. केवल आचेह प्रांत में ही हाल के दिनों में करीब 1,300 प्रवासियों ने शरण ली है.

Myamar Fischer vom Volk der Rohingya
तस्वीर: Getty Images/P. Bronstein

ह्यूमन राइट्स वॉच ने इस स्थिति को "इंसानी पिंग पोंग" का जानलेवा खेल बताया है. यूएन महासचिव बान की मून ने दक्षिणपूर्व एशियाई देशों से "जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए उनकी सीमा और तट खुले रखने" की अपील की है. उन्होंने प्रशासकों को भी याद दिलाया कि वे फंसी या दुर्घटनाग्रस्त हुई नावों को बचाने और संभावित शरणार्थियों को शरण देने के इंकार ना करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

थाईलैंड ने इस संकट पर चर्चा के लिए 29 मई को एक क्षेत्रीय बैठक बुलाई है. लेकिन रोहिंग्या अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने से इंकार करने वाला म्यांमार इसमें हिस्सा नहीं लेना चाहता. म्यांमार के राष्ट्रपति कार्यालय के निदेशक जाव हताय ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "हम शायद इसमें सम्मिलित ना हों...हम इसे स्वीकार नहीं करते अगर वे (थाईलैंड) हमें सिर्फ इसलिए बुलाना चाहते हैं ताकि वे इसे लेकर झेल रहे दबाव को कम कर सकें."

मलेशिया के उप गृहमंत्री ने भी गुरुवार को इस सारे संकट के लिए म्यांमार और बांग्लादेश को जिम्मेदार ठहराया. माना जाता है कि बांग्लादेश छोड़कर भाग रहे ज्यादातर प्रवासी गरीबी से तंग होकर जा रहे हैं जबकि म्यांमार से भागने वाले रोहिंग्या मुसलमान बौद्ध धर्म प्रधान देश में उनके खिलाफ हो रही सांप्रदायिक हिंसा से बचना चाहते हैं. म्यांमार कई पीढ़ियों से अपने देश में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों को अपना नागरिक नहीं बल्कि बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासी मानता है.

आरआर/एमजे (एएफपी)