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70 फीसदी भारतीय सोशल इंफ्लुएंसरों की मानते हैंः रिपोर्ट

१७ फ़रवरी २०२३

भारतीय उपभोक्ताओं पर सोशल मीडिया इंफ्लुएंसरों का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है. एक रिपोर्ट बताती है कि 90 फीसदी लोगों ने कोई चीज इसलिए खरीदी क्योंकि किसी इंफ्लुएंसर ने उसकी सिफारिश की थी.

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तस्वीर: Sajjad Hussain/AFP/Getty Images

सोशल मीडिया पर इंफ्लुएंसर की भूमिका निभाने वाली हस्तियों के कहे का भारतीय उपभोक्ताओं पर बहुत भारी असर होता है. एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया की ताजा रिपोर्ट कहती है कि 70 प्रतिशत भारतीय उपभोक्ता कोई उत्पाद इसलिए खरीद लेते हैं क्योंकि किसी इंफ्लुएंसर ने उनकी सिफारिश की है.

काउंसिल की सालाना रिपोर्ट में भारत में विज्ञापन और उपभोक्ता के आपसी संबंधों के बारे में कई दिलचस्प जानकारियां सामने आई हैं. रिपोर्ट कहती है कि हर दस में से सात उपभोक्ता इंफ्लुएंसर की सिफारिश पर अमल करते हैं जबकि जिन लोगों ने सर्वे में हिस्सा लिया उनमें से 90 प्रतिशत लोग ऐसे थे जिन्होंने कम से कम एक चीज ऐसी खरीदी जिसे किसी इंफ्लुएंसर ने प्रमोट किया था.

18 शहरों में सर्वे

काउंसिल ने देशभर के 18 शहरों में 820 लोगों पर सर्वेक्षण के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है. इन शहरों में महानगरों के अलावा छोटे और मध्यम दर्जे के शहर भी शामिल थे. रिपोर्ट के मुताबिक इंफ्लुएंसर की सिफारिशों का असर क्यों हो रहा है, इसका सबसे अहम कारण ब्रैंड के साथ जुड़ाव के मामले में पारदर्शिता और ईमानदारी रही. दूसरे नंबर पर उत्पाद से जुड़े निजी अनुभवों को साझा करना रहा.

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इंफ्लुएंसर ट्रस्ट रिपोर्ट नाम से जारी यह सर्वे कहता है कि पारदर्शिता की कमी, सामग्री का दोहराव और जरूरत से ज्यादा प्रमोशन लोगों को बुरा लगा और ऐसे मामलों में वे उत्पाद से दूर हो गए.

इस रिपोर्ट में पता चला है कि उत्पाद बेचने के लिए सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर और ब्रैंड्स के बीच हो रही साझेदारियों का फायदा दोनों को ही हो रहा है. सर्वे में शामिल 58 प्रतिशत लोगों ने कहा कि ब्रैंड से जुड़ने पर कोई इंफ्लुएंसर ज्यादा विश्वसनीय हो जाता है जबकि 64 फीसदी उपभोक्ताओं का मानना था कि किसी इंफ्लुएंसर से जुड़ने पर ब्रैंड ज्यादा भरोसेमंद हो जाता है.

सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 79 प्रतिशत लोग सोशल मीडिया इंफ्लुएंसरों को भरोसेमंद मानते हैं. इनमें से 30 फीसदी लोग तो पूरा भरोसा करते हैं जबकि बाकी 49 फीसदी को "कुछ हद तक भरोसा” है.

विज्ञापनों पर भारतीय उपभोक्ताओं को खासा भरोसा है. 91 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे विज्ञापनों पर भरोसा करते हैं. इनमें से 42 प्रतिशत को तो पूरा भरोसा है जबकि बाकी 49 प्रतिशत कुछ हद तक भरोसा करते हैं.

तेजी से बढ़ता असर

दस साल पहले तक सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर नाम का कोई पेशा या उद्योग भारतीय बाजार में मौजूद नहीं था जबकि अब यह कुछ सबसे तेजी से बढ़ते उद्योगों में से एक बन चुका है. हाल के सालों में उपभोक्ता और ब्रैंड दोनों ही फिल्म और अन्य क्षेत्रों की मशहूर हस्तियों के बजाय सोशल मीडिया पर मशहूर हुए और बड़ी फॉलोइंग वाले लोगों के पास जा रहे हैं.

इसकी वजह यह भी है कि लोग अब सोशल मीडिया पर अन्य माध्यमों से ज्यादा वक्त बिता रहे हैं. दस में से छह लोगों ने कहा कि वे दिन में कम से कम दो घंटे सोशल मीडिया पर गुजार रहे हैं. 61 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्होंने तीन या उससे ज्यादा चीजें इसलिए खरीदी क्योंकि किसी इंफ्लुएंसर ने उनकी तारीफ की थी.

इंफ्लुएंसर से प्रभावित होने वाले लोगों में 25 से 44 वर्ष के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा थी. इंफ्लुएंसर के प्रभाव का फायदा स्थापित कंपनियों को ही नहीं नए ब्रैंड्स को भी हुआ है. नए उत्पादों को बड़ी संख्या में लोगों ने सोशल मीडिया के जरिए ही खोजा.

विज्ञापन परिषद ने मई 2021 में सोशल मीडिया इंफ्लुएस गाइडलाइन जारी की थी. काउंसिल की रिपोर्ट कहती है कि उसके बाद उसे 2,767 शिकायतें मिली हैं. नियमों का सबसे ज्यादा उल्लंघन इंस्टाग्राम (58 फीसदी) पर हुआ. उसके बाद यूट्यूब (33), ट्विटर (7) और फेसबुक (2) का नंबर है.

रिपोर्टः विवेक कुमार

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