दूसरे देशों में जाने की तैयारी में जुटे 2.3 करोड़ लोग
१४ जुलाई २०१७संयुक्त राष्ट्र से जुड़े इस संगठन का कहना है कि संभावित प्रवासियों की वास्तविक संख्या कहीं ज्यादा हो सकती है. लेकिन 2.3 करोड़ का आंकड़ा विश्व आबादी के सिर्फ 0.4 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है.
बर्लिन में अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (आईओएम) के केंद्र में अमेरिकी सर्वे कंपनी गैलप के विभिन्न सर्वेक्षणों में जमा जानकारी का विश्लेषण कर रिपोर्ट तैयार की गयी है. इन संभावित प्रवासियों में 20 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वे अमेरिका जाना चाहते हैं. उनके अन्य पसंदीदा देशों में ब्रिटेन, सऊदी अरब, कनाडा, फ्रांस और जर्मनी भी शामिल है. ये ऐसे लोग हैं जिन्होंने माइग्रेशन के लिए ठोस कदम उठाये हैं जिनमें वीजा के लिए आवेदन करना, पैसा बचाना या कोई भाषा सीखना शामिल है.
प्रवासन की तैयारी करने वाले इन लोगों में से 40 फीसदी लोग अफ्रीका में रहते हैं. यह आंकडे 2010 से 2015 के बीच सर्वेक्षणों में जुटायी गयी जानकारी के आधार पर तैयार किये गये हैं. दुनिया के जिन हिस्सों में सबसे ज्यादा संभावित प्रवासी रहते हैं उनमें पश्चिम एशिया सबसे ऊपर है जबकि इसके बाद दक्षिण एशिया, उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व का नंबर आता है.
प्रवासन की योजना बनाने वाले लोगों की संख्या में 2010 से 2015 के बीच पांच प्रतिशत की वृद्धि आयी है. आईओएम के प्रवक्ता जोएल मिलमान का कहना है, "ध्यान देने वाली बात यह है कि संभावित प्रवासियों की संख्या को मापना ठीक वैसा नहीं है जैसा वास्तविक प्रवासियों की संख्या को मापा जाता है." उनका कहना है कि लोग आखिरकार वहां भी रह सकते हैं जहां वे रह रहे हैं क्योंकि प्रवास नीति से जुड़ी बंदिशें और पैसे की कमी के साथ साथ कभी कभी उनका मन भी बदल सकता है.
मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के कई देशों में जारी संघर्ष की वजह से यूरोप की तरफ हाल के सालों में लाखों लोग आये हैं. हजारों लोगों की इस दौरान डूबने से मौतें भी हुई हैं. इनमें से बहुत से लोग युद्ध और तबाही के हालात से जान बचाकर भागने वाले हैं तो कई लोग बेहतर जिंदगी के लिए भी यूरोप का रुख करते हैं. 2015 में जब शरणार्थी संकट चरम पर था तो जर्मनी ने करीब 9 लाख शरणार्थियों को लिया था.
वैसे 2016 में जर्मनी आने वाले शरणार्थियों की संख्या में खासी कमी आई है और यह लगभग 2.8 लाख रही. इसका कारण बाल्कन देशों में सीमाओं को बंद किया जाना और शरणार्थियों को रोकने के लिए तुर्की के साथ हुआ समझौता है.
एके/एमजे (डीपीए)