जलवायु परिवर्तन का असर साफ दिखा 2022 में
इस साल दुनिया भर में ऐसी कई मौसमी आपदाएं देखने को मिलीं जिनका जलवायु परिवर्तन से सीधा संबंध रहा. कहीं अत्यधिक गर्मी पड़ी तो कहीं चरम तूफान और कहीं सूखा पड़ा तो कहीं लगी भीषण आग.
यूरोप: पहले से कहीं ज्यादा गर्म और सूखा
यूरोप में इस साल गर्मियों में भीषण गर्मी के अलावा ऐसा सूखा पड़ा जैसा पिछले 500 सालों में नहीं पड़ा था. स्पेन में रिकॉर्ड हीट वेव में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर चला गया और 500 से ज्यादा लोग मारे गए. कई इलाकों में पानी की ऐसी कमी हो गई कि उसके इस्तेमाल पर नियंत्रण लगाना पड़ा.
यूरोप में भड़की जंगली आग
पश्चिमी यूरोप में पुर्तगाल, स्पेन और फ्रांस से लेकर पूर्व में इटली, ग्रीस और साइप्रस तक और यहां तक कि उत्तर में साइबेरिया तक में जंगली आग का प्रकोप देखने को मिला. साल के मध्य तक आग की लपटों ने 16,30,896 एकड़ भूमि को अपनी चपेट में ले लिया था. 2006 में इस तरह के आंकड़ों को इकट्ठा करना पहली बार शुरू किया गया था और यह तब से अभी तक का सबसे ऊंचा स्तर था.
एशिया में प्रलयकारी बाढ़
पाकिस्तान में मानसून के दौरान हुई चरम बारिश ने देश के एक तिहाई हिस्से को पानी के नीचे डुबो दिया. बाढ़ की वजह से 1,100 से ज्यादा लोग मारे गए, तीन करोड़ से भी ज्यादा लोग बेघर हो गए और कई बीमारियां भी फैलीं. हजारों एकड़ उपजाऊ जमीन भी बर्बाद हो गई, जिसकी वजह से देश में पहले से फैली भुखमरी और बढ़ गई.
चरम गर्मी और तूफानों ने भी सताया
बाढ़ से पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और भारत में चरम गर्मी और सूखा पड़ा. चीन में ऐसा सूखा पड़ा जैसा पिछल 60 सालों में नहीं देखा गया था. वहां हीट वेव भी ऐसी आई जैसी इतिहास में कभी नहीं आई थी. शरद ऋतु के आने तक 12 तूफान चीन में तबाही फैला चुके थे. फिलीपींस, जापान, दक्षिण कोरिया और बांग्लादेश में भी बड़े तूफान आये. जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसे तूफान और शक्तिशाली होते जा रहे हैं.
अफ्रीका में जलवायु संकट के भारी परिणाम
बाकी दुनिया के मुकाबले अफ्रीका ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है. इसी वजह से वहां अनुपातहीन रूप से बारिश के पैटर्न में बदलाव, सूखे और बाढ़ की मार पड़ रही है. सोमालिया में इस समय ऐसा सूखा पड़ा है जैसा 40 सालों में नहीं पड़ा. इस संकट की वजह से 10 लाख से ज्यादा लोग अपने अपने घरों को छोड़ कर चले गए हैं.
अकाल से घर छोड़ने को मजबूर
अफ्रीका के कुछ हिस्सों में बाढ़ और सूखे की वजह से कृषि और मवेशी पालन लगभग असंभव ही हो गया है. इसकी वजह से लाखों लोग भुखमरी से गुजर रहे हैं. इथियोपिया, सोमालिया और केन्या में तो कई लोगों की भुखमरी से मौत हो चुकी है.
उत्तरी अमेरिका में आग और बाढ़
अमेरिकी राज्यों कैलिफॉर्निया, नवादा और एरिजोना में भीषण तूफान आए. गर्मियों में तीनों राज्यों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया था. ठीक इससे विपरीत गर्मियों में येलोस्टोन राष्ट्रीय उद्यान और केंटकी राज्य में भारी बारिश की वजह से भारी बाढ़ आ गई थी.
तूफान लाए बर्बादी
सितंबर में इयान नाम के तूफान ने अमेरिकी राज्य फ्लोरिडा में तबाही फैलाई. स्थानीय अधिकारियों ने हुए नुकसान को "ऐतिहासिक" बताया. इयान का प्रकोप इससे पहले क्यूबा ने झेला था, जहां लोगों को कई दिन बिना बिजली के गुजारने पड़े. उसी महीने में फियोना नाम के तूफान ने पहले लैटिन अमेरिका, फिर कैरीबीयन और फिर कनाडा में इतना नुकसान किया जैसा इतिहास में कभी नहीं हुआ.
केंद्रीय अमेरिका में ट्रॉपिकल तूफान
केंद्रीय अमेरिका में फियोना के अलावा अक्टूबर में जूलिया तूफान ने भी बर्बादी फैलाई थी. कोलंबिया, वेनेजुएला, निकारागुआ, होंडुरस और एल साल्वादोर में भारी बर्बादी हुई. वैश्विक स्तर पर गर्मी बढ़ने से समुद्र की सतह का तापमान बढ़ रहा है, जिसकी वजह से तूफान और विध्वंसकारी बनते जा रहे हैं.
दक्षिण अमेरिका में चरम सूखा
लगभग पूरे दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप में निरंतर पड़ने वाले सूखे की मार पड़ रही है. उदाहरण के तौर पर चिली में 2007 से बारिश की भीषण कमी है. कई इलाकों में नदियां 50 से 90 प्रतिशत तक सिमट चुकी हैं. मेक्सिको में बारिश हुए कई साल बीत चुके हैं. अर्जेंटीना, ब्राजील, उरुग्वे, बोलीविया, पनामा और इक्वाडोर और कोलंबिया के कुछ हिस्सों में भी सूखा है.
न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जलमग्न
ऑस्ट्रेलिया में भारी बारिश की वजह से 2022 में कई बार चरम बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई. जनवरी से मार्च के बीच, देश के पूर्वी तट पर इतनी बारिश हुई जितनी जर्मनी में एक साल में होती है. न्यूजीलैंड भी बाढ़ से नहीं बचा. इन चरम घटनाओं के पीछे ला नीना का हाथ तो था ही, लेकिन जलवायु परिवर्तन ने इन्हें और तीव्र कर दिया. (जनेट क्वींक)