डिज्नी के सौ साल, जिसने कार्टूनों को दिलाई वैश्विक प्रसिद्धि
२१ अक्टूबर २०२३साल 1954 में एक टीवी कार्यक्रम में वॉल्ट डिज्नी ने घोषणा की थी, "बस याद रखें, यह सब एक चूहे (Mouse) से शुरू हुआ था.”
उस समय तक उनकी फिल्म निर्माण कंपनी को व्यवसाय करते हुए 30 साल से ज्यादा हो चुके थे और अमेरिका में सबसे सफल कंपनियों में से एक थी- कार्टूनों के साथ!
मिकी माउस न केवल स्क्रीन हीरो बन गया था, बल्कि टी-शर्ट, फुटबॉल और टूथब्रश कप पर पहले से ही मुस्करा रहा था. एक साल बाद 1955 में कैलिफोर्निया में खुलने वाले पहले डिज्नीलैंड में कार्टून माउस भी जीवित हो गया.
वॉल्ट डिज्नी का जन्म 1901 में हुआ था और वह मिसौरी के एक फार्म में पले-बढ़े. अपने करियर की शुरुआत उन्होंने एक व्यावसायिक कलाकार के रूप में की और फिर एनिमेटेड फिल्मों की खोज की. अपनी जेब में सिर्फ 40 डॉलर के साथ उन्होंने हॉलीवुड का रुख किया और 16 अक्टूबर, 1923 को उन्होंने वॉल्ट डिज्नी कंपनी की स्थापना की, जो आज एक अरब डॉलर की कंपनी है.
कार्टून दिग्गज डिज्नी के दृढ़ विश्वासों में से एक था, "असंभव को पूरा करना मजेदार होता है.”
इस लापरवाह बयान के पीछे एक गहन और लगभग बेफिक्र किस्म की कार्यनीति और कार्यभार छिपा था, लेकिन साथ ही उनके अपने विचारों में एक अटूट विश्वास भी था. शुरुआती दौर में वह कई बार दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गए. उनकी परियोजनाओं को बहुत साहसी माना जाता था, क्योंकि वह नवीनतम फिल्म तकनीक का हमेशा परीक्षण करते और फिर उसे और बेहतर बनाने की दिशा में काम करते.
वॉल्ट डिज्नी अपने काम से इतनी मोहब्बत में थे कि कई बार वह स्टूडियो में ही सो जाते थे और कई बार अपने बच्चों से भी बमुश्किल ही मिल पाते थे. फिर भी, अपनी ऑनस्क्रीन परियों की कहानियों के जरिए वह अनजान बच्चों को मंत्रमुग्ध करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे.
सात लघु चित्रों के साथ एक ऑस्कर
वॉल्ट डिज्नी ने 1937 में फिल्म जगत में इतिहास रच दिया. ‘स्नो व्हाइट एंड द सेवेन ड्वार्फ्स' फिल्म सिनेमाघरों में हिट होने वाली पहली फुल लेंथ एनिमेटेड फिल्म थी. मिकी माउस एंड कंपनी ने पहले केवल लघु फिल्मों में अभिनय किया था. उस समय कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता था कि तब तक अतिरिक्त 60 फीचर लेंथ फिल्में आ पाएंगी.
आखिरकार साहसी निर्माता वॉल्ट डिज्नी ने एक नाटकीय गलत अनुमान लगाया. फिल्म को पूरा करने के लिए करीब ढाई लाख डॉलर के बजाय 15 लाख डॉलर जरूरत थी. उनके कार्टूनिस्टों ने 18 महीने के बजाय तीन साल तक एक ऐसे विचार पर काम किया, जिसे हॉलीवुड में पूरी तरह से पागलपन समझा जाता था. एक फीचर फिल्म की मियाद वाली एनिमेटेड फिल्म? उसके लिए बॉक्स ऑफिस की लाइन में कौन लगेगा?
लेकिन फिल्म की रिलीज के बाद सब साफ हो गया. लोगों को पता चला कि ‘स्नो व्हाइट' ने करीब 80 लाख डॉलर की कमाई की. यह तब की बात है, जब अमेरिका में फिल्म देखने का एक टिकट औसतन 25 सेंट का बिकता था.
10 भाषाओं में अनूदित इस फिल्म ने 46 से ज्यादा देशों के बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा दी.
डिज्नी को अगले साल के अकादमी पुरस्कारों में मानद ऑस्कर मिला. ज्यादा बेहतर तरीके से कहें, तो फिल्म के शीर्षक के अनुरूप कुल आठ पुरस्कार मिले. एक सामान्य आकार का और साथ में सात लघु ऑस्कर प्रतिमाएं.
वहीं दूसरी ओर वॉल्ट डिज्नी स्टूडियो में काम करना शायद एक परी कथा जैसा नहीं था.
हो सकता है वो एक अच्छा लड़का न रहा हो?
ओवरटाइम काम करने की जरूरतें, खराब वेतन और एक बॉस, जो हर छोटी-बड़ी चीज पर नजर रखता था. उसके साथ काम करना आसान नहीं था. यही नहीं, ये तो कंपनी में काम करने की स्थितियां थीं. इसके अलावा कंपनी के बॉस का यह रचनात्मक अहंकार ही था कि वह चाहता था कि शुरुआती क्रेडिट में सिर्फ एक नाम दिखाया जाए और वह नाम था- खुद का यानी वॉल्ट डिज्नी.
आज भी वॉल्ट डिज्नी के ही हस्ताक्षर अरबों डॉलर की कंपनी के लोगो की शोभा बढ़ाते हैं.
फिर भी, यह अकेले वॉल्ट डिज्नी की प्रतिभा नहीं थी, जिसके कारण कंपनी को सफलता मिली. उन्होंने अपने भाई रॉय के साथ मिलकर स्टूडियो की स्थापना की, जिन्होंने बाद में कंपनी का वित्तीय कार्यभार संभाला.
जिस माउस ने इसे शुरू किया था, उसे कला निर्देशक यूबी इवर्क्स ने डिजाइन किया था, लेकिन जाहिर तौर पर इस कैरेक्टर की खोज करने वाले के हिसाब से ही उन्होंने इसे डिजाइन किया.
संयोग से मिकी माउस भी लॉस एंजिल्स की ट्रेन यात्रा के दौरान उद्यमशीलता के शुरुआती दौर में ही बनाया गया था. न्यूयॉर्क में वॉल्ट डिज्नी एक वितरक के साथ समझौता करने में असमर्थ रहे, जिसने उनकी नाक के नीचे से उनके तत्कालीन सफल लघु कार्टून, ‘ओसवाल्ड द लकी रैबिट' को छीन लिया.
मिक्की माउस और व्यापार
वॉल्ट डिज्नी एक दूरदर्शी व्यक्ति और व्यवसायी दोनों थे. उनमें प्रतिभाशाली लोगों को खोज लेने की निगाह भी थी.
अजीब बात है कि 1920 के दशक के अंत में महामंदी के दौरान जब कंपनियां दिवालिया हो गईं और कई परिवार बेहद गरीब हो गए, तब व्यापारिक वस्तुओं का जन्म हुआ.
प्रतिभाशाली विज्ञापन प्रबंधक के कामेन के साथ 1930 के दशक के बाद से मिकी माउस की आकृति मोजों, अनाज के बक्सों और फुटबॉल पर छपने लगी थी. डिज्नी स्टूडियो ने जल्द ही फिल्मों की तुलना में अपने विज्ञापन उत्पादों से काफी अधिक कमाई की.
मिकी माउस की आकृति अब भी कंपनी के लिए आय का एक केंद्रीय स्रोत हैं, जिनकी कीमत अरबों डॉलर है.
स्नो व्हाइट' के बाद ‘पिनोचियो' (1940),डंबो' (1941) और ‘बांबी' (1942) डिज्नी स्टूडियो द्वारा रिलीज की गई फिल्में थीं. लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म "स्नो व्हाइट" की सफलता की बराबरी नहीं कर पाई और उम्मीद के मुताबिक राजस्व हासिल करने में भी विफल रहीं. इसकी एक वजह यह भी थी कि द्वितीय विश्व युद्ध के कारण यूरोपीय बिक्री बाजार लगभग ध्वस्त हो गया था.
चूंकि नए उत्पादन के लिए जरूरी कर्ज देने के लिए शायद ही कोई बैंक मिल सके, इसलिए कंपनी सार्वजनिक हो गई.
इंस्टीट्यूट फॉर मीडिया एंड कम्युनिकेशंस पॉलिसी के अनुसार आज वॉल्ट डिज्नी कंपनी दुनिया के सबसे सफल मीडिया समूहों में छठे स्थान पर है और उस डॉव जोन्स स्टॉक इंडेक्स का हिस्सा है, जो 30 सबसे सफल अमेरिकी कंपनियों की सूची बनाती है.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान डिज्नी स्टूडियो अमेरिकी प्रचार का एक साधन बन गया. स्टूडियो ने कई लघु फिल्में और कार्टून बनाए, जो अमेरिकी युद्ध का महिमामंडन करते थे और दुश्मन की रूढ़िवादी छवियों को प्रस्तुत करते थे.
उदाहरण के लिए, प्रसिद्ध प्रचार फिल्म ‘डेर फ्यूहरर्स फेस' (1943) में डोनाल्ड डक को नाजी जर्मनी में एक हथियार कारखाने में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है और ‘हेल हिटलर' की चिल्लाहट सुनकर वह पागल हो जाता है.
इसी तरह डिज्नी ने अमेरिकी सेना के लिए शैक्षिक और प्रशिक्षण फिल्में भी बनाईं. आलोचकों ने इस बात की शिकायत भी की कि कंपनी के लिए युद्ध प्रचार के बजाय शांतिवादी और मानवतावादी संदेश फैलाना बेहतर होता.
डिज्नी के लिए कई ऑस्कर
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के वर्षों में डिज्नी ने अपनी फीचर-लेंथ फिल्मों की सफलता को ‘एलिस इन वंडरलैंड' (1951) और ‘पीटर पैन' (1953) जैसी फिल्मों के जरिए आगे बढ़ाया.
1955 में वॉल्ट डिज्नी के दिमाग में एक और धुन सवार हुई. अपनी परी कथाओं की दुनिया को वास्तविकता बनाना. इसके लिए उन्होंने पहला डिज्नीलैंड अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया में बनाया. बाद में इसकी शाखाएं फ्लोरिडा, पेरिस, टोक्यो, हांगकांग और शंघाई में भी फैलीं.
वॉल्ट डिज्नी को उनके जीवनकाल में 26 ऑस्कर से सम्मानित किया गया, जो अभूतपूर्व रिकॉर्ड था. हालांकि, वह अपनी आखिरी फिल्म ‘द जंगल बुक' (1967) का प्रीमियर देखने के लिए जीवित नहीं रहे, क्योंकि 1966 में फेफड़ों के कैंसर से उनकी मौत हो गई.
फिर भी, 1980 के दशक की शुरुआत में भारी वित्तीय संकट के बावजूद डिज्नी ब्रांड बचा रहा. 1986 में वॉल्ट के भतीजे रॉय ई. डिज्नी ने एनीमेशन स्टूडियो का प्रबंधन संभाला और जेफरी कैटजेनबर्ग के साथ मिलकर ‘डिज्नी पुनर्जागरण' का नेतृत्व किया. फिर इसी स्टूडियो से ‘द लिटिल मरमेड' (1989), ब्यूटी एंड द बीस्ट' (1991) और ‘द लायन किंग' (1994) का जन्म हुआ.
वॉल्ट डिज्नी आर्काइव के निदेशक बेट्टी क्लाइन ने DW को बताया, "मुझे लगता है कि जब आप डिज्नी को किसी भी चीज से जोड़ते हैं, तो आप इसे जादू, कल्पना और रचनात्मकता से जोड़ते हैं. और मुझे लगता है कि हमारी कंपनी में यही बहुत अलग है. सच्चाई यह है कि हम कहानियां सुनाते हैं और हम जो कुछ भी करते हैं, उसमें जादू करते हैं.”
2000 के दशक के बाद से इस कार्टून कंपनी ने अपने विस्तार पर ध्यान केंद्रित किया. सबसे पहले इसने सफल एनिमेशन स्टूडियो पिक्सर को खरीदा (जिसके साथ यह पहले ही ‘टॉय स्टोरी' और ‘फाइंडिंग नीमो' जैसी फिल्मों का निर्माण कर चुका था). फिर मार्वल के साथ कई सुपरहीरो फिल्मों को छीन लिया और आखिरकार लंबे समय से बॉक्स ऑफिस पर हिट कंपनी रही लुकासफिल्म के साथ ‘स्टार वार्स' सीरीज बनाई. इसके बाद तो कई टीवी सीरियल, कई प्रीक्वल, सीक्वल और स्पिन-ऑफ का निर्माण किया गया.
बेशक अपने संस्थापक की भावना के अनुरूप डिज्नी तकनीकी नवाचारों के साथ तालमेल बनाए रखना जारी रखे हुए है. हालांकि, इसका अपना स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म डिज्नी+ 2019 में कुछ देर से शुरू हुआ और शुरुआती दौर में ही लड़खड़ा गया, लेकिन 2022 के लिए इसके तिमाही आंकड़ों के मुताबिक अब यह नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम के बाद दुनियाभर में तीसरे स्थान पर है.
नस्लवाद और सांस्कृतिक विनियोग को लेकर आलोचना?
हालांकि, अरबों डॉलर का निगम वित्तीय बाधाओं को सुरक्षित रूप से दूर करने में सक्षम हो सकता है, लेकिन इसका पुराना मुख्य व्यवसाय यानी परी-कथा फिल्में विवादों में आ गई हैं. ‘डंबो' या ‘द जंगल बुक' जैसी क्लासिक फिल्मों में नस्लवादी चित्रण के आरोपों के बाद डिज्नी ने अपनी फिल्मों में चेतावनी लेबल जोड़ना शुरू कर दिया.
सांस्कृतिक विनियोग की आलोचना के जवाब में निगम भी अब अन्य देशों और लोगों की सांस्कृतिक विशेषताओं से अधिक संवेदनशीलता से निपटने की कोशिश कर रहा है. जैसे 1994 की फिल्म ‘द लायन किंग' में स्वाहिली कहावत ‘हकूना मटाटा' के विपणन में. इसलिए 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर इसने ‘द लिटिल मरमेड' का लंबे समय से प्रतीक्षित लाइव-एक्शन फिल्म संस्करण लॉन्च किया, जिसमें प्रमुख अश्वेत अभिनेत्री हैले बेली शामिल थीं.
लेखक: नाडीन वॉयत्सिक