सुपरबग का अड्डा बनी भारत की जहरीली झील
३० सितम्बर २०१६हैदराबाद से कुछ ही दूरी पर बसा मेडक दवा उद्योग में खासा मशहूर नाम है. 25 लाख की आबादी वाला यह जिला भारतीय एंटीबायोटिक उद्योग का केंद्र है. दुनिया भर के देशों को सस्ती दवाएं मुहैया कराने में मेडक सबसे आगे है. वहां 300 से ज्यादा दवा कंपनियां हैं और हर साल 14 अरब डॉलर की दवाएं निर्यात होती हैं. लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं, रिसर्चरों और दवा कंपनियों के कुछ कर्मचारियों का कहना है कि दवा उद्योग सख्त निगरानी से बच रहा है. वॉटर ट्रीटमेंट का अच्छा इंतजाम न होने की वजह से नदियां और झीलें एंटीबायोटिक से भर चुकी हैं. हालत इतनी खराब हो चुकी हैं कि पानी में एंटीबायोटिक दवाओं से ज्यादा ताकतवर बैक्टीरिया पनप रहे हैं.
मेडक इंडस्ट्रियल जोन के पतांचेरू में काम करने वाले डॉक्टर और एक्टिविस्ट किशन राव कहते हैं, "प्रतिरोधी क्षमता हासिल कर चुके बैक्टीरिया यहां ब्रीड कर रहे हैं और वे पूरी दुनिया को प्रभावित करेंगे." डॉक्टर रेड्डीज लैब, अरबिंदो फर्मा और हीटेरो ड्रग्स और मिलैन जैसी दिग्गज दवा कंपनियों का कहना है कि वे दूषित कचरा पानी में नहीं बहा रही हैं. कंपनियां स्थानीय पर्यावरण नियमों का पालन करने का दावा भी कर रही हैं.
समस्या को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच भी मतभेद हैं. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पतांचेरू इलाके को "गंभीर रूप से दूषित" करार दे चुका है. वहीं तेलगांना प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हालात ठीक होने का दावा करता है. बीते सालों में कुछ बैक्टीरिया बेहद ताकतवर हुए हैं, इन्हें सुपरबग भी कहा जाता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक सुपरबग को मेडिसिन जगत की सबसे बड़ी मुसीबत करार दे चुके हैं. सुपरबग पर कोई भी एंटीबायोटिक दवा काम नहीं करती है. अमेरिका में ही एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया के चलते गंभीर इंफेक्शन के 20 लाख मामले सामने आ चुके हैं. हर साल 23,000 लोगों की मौत हो रही है.
संयुक्त राष्ट्र और अन्य सदस्य देशों की अपील के बाद मेडक में 13 दवा कंपनियों ने सुपरबग के सफाये के लिए सफाई करने का एलान किया. लेकिन समस्या इतनी विकराल हो चुकी है कि तेजी और पूरी गंभीरता से कदम उठाने होंगे. स्थानीय डॉक्टर किशन राव के मुताबिक स्वीडन की गोथेनबुर्ग यूनिवर्सिटी के शोध में पता चला कि काजीपल्ली झील और उसके आस पास फॉर्मास्यूटिकल कचरे की मात्रा बहुत ज्यादा है. झील में एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन भी मिले.
(दुनिया की सबसे दूषित नदियां)
इस इलाके पर पहली बार 2007 में शोध किया गया. उस शोध के मुताबिक दवा फैक्ट्रियों के ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाले एंटीबायोटिक कचरे की सघनता एंटीबायोटिक दवा खाने वाले बीमार इंसान के खून में मिलने वाले रसायनों से भी ज्यादा है. कचरे को पास की नदियों और झीलों में डाला गया. 2015 में फिर एक शोध हुआ जिसके मुताबिक, "भारत और स्वीडन की दूसरी झीलों से तुलना की जाए तो यहां की दूषित झील सिप्रोफ्लोक्सैसिन प्रतिरोधी और सल्फैमेथोएक्जॉल प्रतिरोधी बैक्टीरिया का घर बन चुकी है." सिप्रोफ्लोक्सैसिन और सल्फैमेथोएक्जॉल सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली दो एंटीबायोटिक दवाओं के जेनेरिक नाम हैं.
इसके बावजूद हैदराबाद की बल्क ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन का कहना है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को काजीपल्ली की झील में कोई एंटीबायोटिक नहीं मिले. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने कई बार राज्य प्रदूषण बोर्ड से उस रिपोर्ट की कॉपी मांगी, लेकिन कॉपी नहीं दी गई. पहली स्वीडिश स्टडी करने वाले गोथेनबर्ग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर योआखिम लार्सन के मुताबिक, "मैंने कोई ऐसी विश्वसनीय रिपोर्ट नहीं देखी है जो कहे कि वहां ड्रग्स नहीं हैं. हो सकता है कि वहां सुधार हुआ हो, लेकिन बिना आंकड़े सामने रखे, मैं कैसे यकीन करूं."
(हार्ट अटैक में क्या होता है)
स्थानीय कार्यकर्ताओं और वैज्ञानिकों के मुताबिक मेडक में कॉमन एफ्लूएंट ट्रीटमेंट प्लांट 1990 के दशक में लगाया गया. लेकिन यह बड़ी मात्रा में निकलने वाले फॉर्मास्यूटिकल कचरे को साफ करने में अक्षम है. स्थानीय लोगों के विरोध और कोर्ट में केस के बाद 20 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बनाई गई. दवा उद्योग के दूषित कचरे को पाइप के जरिये हैदराबाद के प्लांस में भेजा गया. लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि हैदराबाद भेजे गए कचरे को घरेलू सीवेज में मिक्स कर दिया गया और फिर ट्रीटमेंट के बाद मुसी नदी में डाल दिया गया.
आईआईटी ने इसी साल इलाके में शोध किया और पाया कि मुसी नदी में एंटीबायोटिक तत्वों की मात्रा बहुत ज्यादा है. मुसी भारत की सबसे बड़ी नदियों में शामिल कृष्णा की सहायक नदी है. स्थानीय अधिकारियों और प्रशासन से जब इस बारे में पूछा गया तो फिर चुप्पी मिली.
जेबा सिद्दिकी/ओएसजे (रॉयटर्स)