राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर लाएगी सरकार
२४ दिसम्बर २०१९केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा , "जनगणना के लिए 8,754.23 करोड़ के खर्च को मंजूर किया गया है. साथ ही राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के लिए 3,941.35 करोड़ रुपये के खर्च को सरकार ने मंजूरी दी है."
कैबिनेट बैठक के बाद जावड़ेकर ने पत्रकारों से कहा कि भारत में ब्रिटिश काल से देश की जनसंख्या की जनगणना होती है. आजादी के बाद अब तक सात बार जनगणना हो चुकी है और अब आठवीं बार जनगणना होगी. सरकार के मुताबिक अगले साल के अप्रैल से सितंबर तक यह काम चलेगा. जावड़ेकर ने बताया कि इस बार टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से इस प्रक्रिया को आसान बनाने का काम किया गया है. इसके लिए सरकार ने ऐप तैयार किया है.
जावड़ेकर के मुताबिक सरकार को जनता पर पूरा भरोसा है और जो जनता कहेगी वही सरकार मानेगी. जावड़ेकर के मुताबिक एनपीआर के लिए कोई बायोमीट्रिक डाटा या दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है. साथ ही जावड़ेकर ने कहा कि एनपीआर को लेकर सभी राज्यों में कर्मचारियों की ट्रेनिंग का काम चल रहा है. सरकार का दावा है कि एनपीआर के जरिए सरकारी योजनाओं का लाभ असली लाभार्थी तक पहुंचाने में आसानी होगी. जावड़ेकर ने कहा कि सरकार चाहती है कि उसकी योजनाओं का लाभ सही और सभी लाभार्थियों तक पहुंचे.
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के तहत भारत के हर नागरिक को रजिस्टर में नाम दर्ज कराना अनिवार्य होगा. एनपीआर के तहत एक अप्रैल, 2020 से 30 सितंबर, 2020 तक नागरिकों का डाटाबेस तैयार किया जाएगा. एनपीआर का मुख्य उद्देश्य देश के सामान्य निवासियों की व्यापक पहचान का डाटाबेस बनाना है. संशोधित नागरिकता कानून बनने के बाद पश्चिम बंगाल और केरल ने एनपीआर के अपडेशन का काम रोक दिया है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एनपीआर का काम रोकते हुए कहा था कि यह जनहित में लिया गया फैसला है. वहीं केरल के मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि राज्य सरकार ने एनपीआर को स्थगित रखने का फैसला किया है क्योंकि आशंका है कि इसके जरिए एनआरसी लागू की जाएगी. केरल में सीपीएम के नेतृत्व वाली सरकार ने इस पर रोक लगाते हुए कहा कि यह फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि सीएए संवैधानिक मूल्यों से भटक गया है और यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.
दूसरी ओर प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, "कैबिनेट ने एनपीआर को अपडेट करने की मंजूरी दे दी है. इसके तहत किसी को भी प्रमाण देने की जरूरत नहीं होगी. जो भी भारत में रहता है उसको एनपीआर में शामिल किया जाएगा."
केंद्र सरकार का कहना है कि एनपीआर का काम राष्ट्रीय जनगणना अधिनियम के तहत हो रहा है. केंद्र सरकार के मुताबिक फरवरी 2021 में हेडकाउंट होगा. जो भी भारत में रहता है उसकी गणना इसमें होगी. एनपीआर का काम असम छोड़कर देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में होगा. असम में 'अवैध घुसपैठियों' की पहचान के लिए पहले ही एनआरसी लागू हो चुकी है. संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दौरान साल 2010 में पहली बार एनपीआर के लिए डाटा जमा किया गया था. साल 2011 में आखिरी बार देश में जनगणना भी हुई थी. अगली जनगणना साल 2021 में होनी है. ऐसे में केंद्र सरकार एनपीआर और उसके अपडेशन पर जोर दे रही है.
एनआरसी और एनपीआर में फर्क
नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में अंतर है. एनआरसी में अवैध अप्रवासियों की पहचान की बात कही गई है, चाहे वह किसी भी जाति, वर्ग या धर्म के पहचान के हों. एनआरसी में ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर भेजने का प्रावधान है. एनआरसी फिलहाल असम में लागू है और इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है. सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में असम में एनआरसी का काम हुआ है.
वहीं एनपीआर का उद्देश्य छह महीने या उससे अधिक समय से स्थानीय क्षेत्र में रह रहे निवासी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करना होता. हालांकि कुछ राजनीतिक दल एनपीआर को लेकर संदेह जता रहे हैं. हैदाराबाद से सांसद और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि मोदी सरकार एनपीआर के जरिए एनआरसी लागू कराने की तैयारी में है. ओवैसी ने ट्वीट कर कहा, "एनपीआर नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस का पहला चरण है जो राष्ट्रव्यापी एनआरसी का दूसरा नाम है."
इन आरोपों को सरकार ने खारिज कर दिया है और कहा है एनपीआर का एनआरसी से कोई संबंध नहीं है. जावड़ेकर के मुताबिक इसे यूपीए सरकार ने शुरू किया था, और यह अच्छा काम था जिसे मौजूदा सरकार भी जारी रख रही है.
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