भारी विरोध के बीच लोक सभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पेश
९ दिसम्बर २०१९केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को लोक सभा में विवादास्पद नागरिकता संशोधन विधेयक प्रस्तुत कर दिया. विधेयक का उद्देश्य है पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिन्दू, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी समुदाय के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देना. विपक्ष का आरोप है कि ये विधेयक मूलतः पड़ोसी देशों से आने वाले गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए लाया जा रहा है और इसके कारण भारत में पहली बार धर्म नागरिकता का एक आधार बन जाएगा.
विपक्ष का मानना है कि भारत संवैधानिक रूप से एक पंथ-निरपेक्ष राष्ट्र है जो धर्म के आधार पर नागरिकों के बीच में भेदभाव नहीं कर सकता. इस वजह से धर्म को नागरिकता का आधार बनाना संविधान की मूल भावना के ही खिलाफ है. जैसा की अनुमान लगाया जा रहा था, सोमवार को लोक सभा में विधेयक को भारी विरोध का सामना पड़ा. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, एआईएमआईएम, एआईयूडीएफ, आईयूएमएल समेत लगभग सभी विपक्षी दलों ने विधेयक का विरोध किया और सरकार से उसे ना लाने को कहा.
कांग्रेस सांसद शशि थरूर और आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन जैसे कुछ सांसदों ने सदन में यह भी कहा कि ये विधेयक असंवैधानिक है और इस तरह के विधेयक लाना विधायिका के अधिकार क्षेत्र में ही नहीं है. लोक सभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि ये बिल देश के अल्पसंख्यकों के खिलाफ नियोजित विधेयक है. तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगाता रॉय ने कहा कि बिल विभाजनकारी है और इसका उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो हर भारतीय नागरिक को धर्म, नस्ल, जाति, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है.
विधेयक के समर्थन में गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष से पूछा कि क्या पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1971 में बांग्लादेश से आये शरणार्थियों को नागरिकता देना भी असंवैधानिक था? उन्होंने बिल के मुस्लिम-विरोधी होने के आरोप को ठुकराते हुए कहा कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दू, सिख, बौद्ध, ईसाई, पारसी और जैन समुदाय के लोगों के साथ भेदभाव हुआ है, इसलिए सिर्फ उन्हें ही नागरिकता मिलेगी. उन्होंने यह भी कहा कि इस बिल की आज जरूरत इसलिए पड़ी है क्योंकि 1947 में कांग्रेस ने धर्म के आधार पर देश का बंटवारा कर दिया था.
विधेयक का इतना विरोध हुआ कि उसे पेश करने का प्रस्ताव पारित करने के लिए लोक सभा अध्यक्ष को इलेक्ट्रॉनिक मतदान करना पड़ा. मतदान में सत्तापक्ष का पलड़ा भारी पड़ा और विधेयक को लाये जाने के समर्थन में 299 मत पड़े. विरोध में सिर्फ 82 मत पड़े और विधेयक लोक सभा के पटल पर रख दिया गया.
बिल का विरोध पूर्वोत्तर भारत समेत देश के कई इलाकों में सड़कों पर भी हुआ. असम की राजधानी गुवाहाटी में कई संगठनों ने बिल के खिलाफ बंद का आह्वान किया था जो सफल रहा.
माना जा रहा है कि सरकार इसी हफ्ते विधेयक को लोक सभा से पारित करा कर राज्य सभा में भी लाना चाह रही है. लोक सभा में सरकार का संख्याबल ज्यादा है इसलिए सरकार को उम्मीद है कि निचले सदन से वो विधेयक को आसानी से पारित करा लेगी. असली चुनौती राज्य सभा में आएगी जहां सरकार बहुमत में नहीं है और ऐसी पार्टियों से समर्थन मिलने की उम्मीद लगाए हुए है जो न सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा हैं और ना मुखर रूप से विपक्ष की भूमिका निभाती हैं.
एनडीए सरकार एक बार पहले भी इस विधेयक को संसद से पारित कराने की कोशिश कर चुकी है. पिछली लोकसभा में भी एनडीए सरकार इस बिल को संसद में लाई थी और इसे लोकसभा से पारित भी करा लिया था. लेकिन राज्यसभा में बिल को भारी विरोध का सामना पड़ा और अंततः यह गिर गया था.
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