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बिल्लियों के गुर्दों पर रिसर्च के लिए 20 लाख डॉलर

१५ सितम्बर २०२१

कहते हैं बिल्लियों को नौ बार जिंदगी मिलती है लेकिन असलियत में अक्सर गुर्दों की बीमारी इनकी मौत का कारण बनती है. जापान में इस बीमारी का इलाज खोज निकालने के लिए बिल्ली प्रेमियों ने चंदे में लगभग 20 लाख डॉलर जुटा लिए हैं.

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तस्वीर: Jean-Michel Labat/Ardea/imago images

टोक्यो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक पहले से बिल्लियों को गुर्दों की बीमारी से बचाने के तरीकों पर शोध कर रहे थे, लेकिन कोरोनावायरस महामारी के आने के बाद से इस शोध के लिए कॉर्पोरेट जगत से मिल रही फंडिंग बंद हो गई.

समाचार एजेंसी जिजि प्रेस ने जब इन शोधकर्ताओं की समस्या पर एक लेख छापा, तो वो वायरल हो गया. उस लेख की बदौलत बिल्ली प्रेमियों ने इस रिसर्च को जारी रखने के लिए ऑनलाइन चंदा इकठ्ठा करने की मुहिम चलाई और जल्द ही हजारों लोग इससे जुड़ गए.

क्या है ये बीमारी

20 डॉलर चंदा देने वाली एक महिला ने एक संदेश में लिखा, "मैंने पिछले साल में दिसंबर में अपनी प्यारी बिल्ली को गुर्दों की बीमारी की वजह से खो दिया...मुझे उम्मीद है कि यह रिसर्च आगे बढ़ेगी और कई बिल्लियों की इस बीमारी से मुक्त होने में सहायता करेगी." 

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वेस्ट बैंक में एक बिल्ली की सर्जरी करता जानवरों का एक फलस्तीनी डॉक्टरतस्वीर: Raneen Sawafta/REUTERS

90 डॉलर देने वाले एक व्यक्ति ने  कहा,"मैं हाल ही में बिल्ली की एक बच्ची को घर ले कर आया. मैं चंदा देकर उम्मीद कर रहा हूं कि यह इलाज समय रहते मिल जाए और इस बिल्ली के भी काम आए."

पालतू बिल्लियां हों या जंगल में रहने वाले उनके बड़े भाई-बहन, इन सब पर इस बीमारी का बहुत खतरा रहता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इनके जींस में एक प्रक्रिया के तहत अक्सर एक जरूरी प्रोटीन सक्रिय नहीं हो पाता है.

दोगुना जी सकेंगी बिल्लियां

इस प्रोटीन की खोज भी टोक्यो के इन्हीं शोधकर्ताओं ने की थी. इसे एआईएम के नाम से जाना जाता है और यह शरीर में मरी हुई कोशिकाओं और अन्य कचरे को साफ करने में मदद करता है. इससे गुर्दे बंद होने से बचे रहते हैं.

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संभव है कि इस शोध से बिल्लियां दोगुना जी पाएंगीतस्वीर: Sabine Brose/Frank Sorge/imago images

इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर तोरु मियाजाकी और उनके टीम इस प्रोटीन को एक स्थिर मात्रा और गुणवत्ता में बनाने के तरीकों पर काम कर रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि वो एक ऐसा तरीका खोज पाएंगे जिसकी वजह से बिल्लियों का औसत जीवनकाल 15 सालों से बढ़कर दोगुना हो सकता है.

मियाजाकी कहते हैं, "मैं उम्मीद कर रहा हूं कि आने वाले समय में जानवरों के डॉक्टर बिल्लियों को टीकों की ही तरह यह इंजेक्शन भी हर साल दे पाएंगे." उन्होंने आगे कहा, "अगर वो इसकी एक या दो खुराक हर साल दे पाएं तो अच्छा रहेगा." 

लोकप्रिय शोध

जुलाई में लेख के छपने के कुछ ही घंटों में उनकी टीम को बिन मांगे ही 3,000 लोगों ने चंदा भेज दिया. कुछ ही दिनों में यह संख्या बढ़ कर 10,000 हो गई. यह संख्या विश्वविद्यालय को एक साल में मिलने वाले कुल चंदे से भी ज्यादा है.

Der Gotokuji-Tempel in Tokio hat schon seit langer Zeit spirituelle Besucher angezogen mit seinen tausenden von Figuren, die Glück bringen sollen.
टोक्यो के गोतोकुजी मंदिर में रखी बिल्लियों की मूर्तियों को शुभ माना जाता हैतस्वीर: Getty Images/K.Nogi

सितंबर के मध्य तक पहुंचते पहुंचते चंदे में करीब 19 लाख डॉलर हासिल हो चुके थे. मियाजाकी कहते  हैं, "मुझे पहली बार एहसास हुआ कि मेरे शोध के नतीजों का लोगों को कितना इंतजार है."

एआईएम शरीर में कैसे काम करता है, इस सवाल पर उनकी टीम का शोध 2016 में 'नेचर मेडिसिन' पत्रिका में छपा था. यह टीम पालतू जानवरों के लिए ऐसा खाना भी विकसित कर रही है जिसमें ऐसा पदार्थ होगा जो बिल्लियों के खून में निष्क्रिय पड़े एआईएम को सक्रिय करमें में मदद कर सके.

सीके/वीके (एएफपी)

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