प्रियंका के सपनों की उड़ान
७ जून २०१३कोलकाता में पैदा हुई प्रियंका ने वहीं से बायोइंजीनियरिंग में स्नातक किया. वह भारत के पहले उन लोगों में से हैं जिन्होंने बायोइंजीनियरिंग में बीटेक की. वह बताती हैं कि तक उसके अनुरूप नौकरियां भी ज्यादा नहीं थी. इसलिए उन्हें भविष्य में क्या करना है यह तय करना मुश्किल हो गया. प्रियंका ने आइबीएम कंपनी में नौकरी की, लेकिन सात महीने बाद ही उन्हें एहसास हुआ कि वह आगे पढ़ाई करना चाहती हैं.
उनका लक्ष्य था किसी ऐसे क्षेत्र में मास्टर्स करना जिससे उनके लिए भविष्य में रिसर्च और अध्यापन समेत और भी कई विकल्प खुले रहें. साथ ही वह चाहती थीं कि किसी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में उन्हें पूरी स्कॉलरशिप मिले. कोशिश करने से यह संभव हो सका और उन्हें अमेरिका की टेक्सास यूनिवर्सिटी में मास्टर्स का मौका मिला.
मास्टर्स की पढ़ाई के बाद प्रियंका ने पाया कि जर्मनी में रिसर्च के मौके उनके लिए ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि प्रियंका के अनुसार जर्मनी में रिसर्च के लिए संस्थाओं के पास फंडिंग ज्यादा है, जिससे स्कॉलर्शिप मिलना ज्यादा आसान है. साथ ही छात्रों को अपनी इच्छानुसार ज्यादा से ज्यादा प्रयोग बिना किसी आर्थिक दबाव के करने का मौका मिलता है.
भारत से अमेरिका, फिर जर्मनी
इस बीच जर्मनी आने से पहले प्रियंका के पास को पास इंग्लैंड में भी रिसर्च करने का अवसर था, लेकिन वह मानती हैं कि जर्मनी आने का फैसला उनके लिए काफी फायदेमंद साबित हुआ. भारत से अमेरिका और अब तीन साल से जर्मनी में रह रहीं प्रियंका जब तीनों जगहों की संस्कृति और रहन सहन की तुलना करती हैं, तो मानती हैं कि अमेरिका के मुकाबले जर्मनी में रहना उनके लिए ज्यादा आसान साबित हुआ.
अमेरिका में उनके दोस्त जरूर थे लेकिन उन्हें कभी घर जैसा महसूस नहीं हुआ, जबकि जर्मनी में उन्हें काम करने का तरीका काफी अच्छा लगता है. वह कहती हैं कि जर्मनी में आपके साथ काम करने वाले भी आपके दोस्त जैसे ही होते हैं. काम के बीच में भी कभी कभार हंसी मजाक होने से वातावरण दोस्ताना बना रहता है. लोग एक दूसरे की आगे बढ़ कर मदद करते हैं.
प्रियंका को इस बात का दुख है कि भारत के पास जितने अच्छे और प्रखर छात्र हैं, उतनी नौकरियां नहीं हैं. इस कारण उन्हें देश के बाहर बेहतर मौके तलाशने पड़ते हैं. रिसर्च पूरी करने के बाद प्रियंका पोस्ट डॉक्ट्रेट की पढ़ाई भी करना चाहती हैं. उन्हें उम्मीद है कि आगे भी उन्हें यहां पढ़ाई जारी रखने का मैका मिलेगा. प्रियंका चाहती हैं कि उनके जानने वाले, मित्र और दूसरे रिश्तेदारों के बच्चे भी जर्मनी आकर पढ़ाई करें. उन्हें जर्मन भाषा नहीं आती, लेकिन वह कहती हैं कि इस कारण उन्हें कभी कोई दिक्कत नहीं आई.
रिपोर्ट: समरा फातिमा
संपादन: ईशा भाटिया