पानी और बिजली पर बांध की राजनीति
दुनिया भर में विशाल बांध आर्थिक विकास को तेजी देते हैं, इसके साथ ही ये शान और ताकत का भी प्रतीक हैं. हालांकि एक बड़ा सवाल यह है कि धारा के निचले हिस्से में रहने वालों का क्या होता है?
नील नदी पर इथियोपिया का मेगा डैम
145 मीटर ऊंचा, 5 गीगावाट का ग्रेंड इथियोपियन रेनेसां डैम (जीईआरडी) देश में बिजली उत्पादन को दोगुना कर देगा. सितंबर 2023 में नील नदी पर बने इस विशाल बिजली संयंत्र के आखिरी चौथे भंडार को पानी से भरने का काम पूरा हो गया. इस पर मिस्र की ओर से एक बार फिर विरोध के स्वर बुलंद हुए जो पहले से ही इसके खिलाफ आवाज उठा रहा है. इस परियोजना पर 3.7 अरब यूरो का खर्च आया है.
नील नदी पर निर्भर जीवन
मिस्र और सूडान को जीईआरडी के नतीजों का डर है. बांध के साथ इथियोपिया का नील नदी के पानी पर नियंत्रण हो जाएगा जिसकी इन देशों को नील डेल्टा के खेतों की सिंचाई के लिए जरूरत है. बिजली संयंत्रों के लिए पानी बहते रहना चाहिए लेकिन पड़ोसी देश इथियोपिया के इन दावों से आश्वस्त नहीं है कि वह बांध का पानी अपने खेतों में इसेतमाल नहीं करेगा. खासतौर से जब जलवायु परिवर्तन की वजह से पानी की कमी हो रही है.
मेकॉन्ग के विशाल बांध
1990 के दशक से ही चीन मेकॉन्ग नदी पर 11 विशालकाय बांध बना रहा है. इसने चीन को दुनिया में सबसे बड़ा पनबिजली उत्पादक देश का दर्जा दिलाया है. कोयले के बाद चीन के लिए यह दूसरा सबसे बड़ा बिजली पैदा करने का जरिया है. हालांकि लाओस, थाईलैंड, वियतनाम और कंबोडिया भी मेकॉन्ग नदी पर निर्भर हैं. इन विशाल बांधों के निर्माण ने नीचे की ओर बहती धारा में पानी की कमी की है.
कंबोडिया में सूखा
नीचे की ओर मेकॉन्ग डेल्टा को चीन के बांधों की वजह से पानी के बहाव और समय में परिवर्तन का नुकसान झेलना पड़ा है. एक तरफ जहां सूखे की घटनाएं बढ़ रही हैं वहीं मछलियों की मात्रा भी प्रभावित हुई है. थाईलैंड और कंबोडिया के किसान और मछुआरे खासतौर से इसकी वजह से काफी परेशान हैं. ये सब तब है जबकि सैटेलाइट से मिले आंकड़े दिखा रहे हैं कि चीन वाले हिस्से में बारिश और बर्फ के पिघलने से ज्यादा पानी पहुंचा है.
दुनिया भर में चीन के पनबिजली संयंत्र
चीन दुनिया भर में सैकड़ों पनबिजली संयंत्रों में निवेश कर रहा है. इसमें लाओस से लेकर पुर्तगाल, कजाखस्तान, अर्जेंटीना और पूरे अफ्रीका तक के देश शामिल हैं. इनमें गिनी का सौपिती बांध भी है. पहले इस तरह की परियोजनाएं ज्यादातर वर्ल्ड बैंक के निवेश से बनती थीं. इधर चीन ने इन पर निवेश में खूब पैसा बहाया है. इसके लिए उन देशों के साथ समझौता भी नहीं किया जाता जो किसी नदी के पानी में साझीदार हैं.
बांध के कारण विस्थापन
गिनी के सौपिती बांध के लिए पैसा चीन के इंटरनेशनल वॉटर एंड इलेक्ट्रिक कॉर्पोरेशन ने दिया है. इससे देश को 450 मेगावाट बिजली मिलेगी. गिनी में बिजली की स प्लाई के भरोसेमंद स्रोत बहुत कम हैं. हालांकि इसके लिए एक विशाल जलभंडार की जरूरत होगी और जो 253 वर्ग किलोमीटर जमीन को डुबोया जाएगा. समाजसेवी संस्था ह्यूमनराइट्स वॉच के मुताबिक इसके नतीजे में 100 गांवों के 16,000 लोग विस्थापित हो जाएंगे.
सीमाओं का जुड़ना
ब्राजील और पराग्वे के बीच पराना नदी पर बन रहे इटाईपु बांध की वजह से जंगल का एक विशाल हिस्सा और दुनिया के शानदार झरने डूब गए. इसकी वजह से 65,000 लोग विस्थापित हुए. इस बांध की वजह से इन दोनों देशों के बीच तनाव भी पैदा हो गया. इन दोनों देशों ने इस संयुक्त पनबिजली परियोजना पर 1973 में काम करने के लिए समझौता किया था. पानी का बड़ा हिस्सा ब्राजील में जा रहा है इस वजह से बांध विवादों में घिर गया है.
कोलोराडो का बांध
मेक्सिको अमेरिका की सीमा भले ही प्रवासियों और ट्रंप की बनाई दीवार की तस्वीरों से दुनिया भर में जाना जाता हो लेकिन उत्तर की ओर बढ़ते लोगों के साथ ही यहां चिंता कोलोरोडा नदी को उल्टी दिशा में बहाने को लेकर भी है. मेक्सिको तक पहुंचते पहुंचते यह नदी अमेरिका के साथ राज्यों और कई बांधों से होकर गुजरती है जो इसका पानी अमेरिकी फसलों की सिंचाई में इस्तेमाल करते हैं.
मेक्सिकाली वैली को पानी
दोनों देश मोरेलोस बांध के संयुक्त इस्तेमाल पर बात कर रहे हैं ताकि मेक्सिकाली वैली को पानी मिल सके. इसके लिए एक "पल्स" सिस्टम इस्तेमाल किया जा रहा है जो प्राकृतिक बहाव की तरह ही पानी को कोलोराडो डेल्टा की तरफ ले जाएगा. पानी की राजनीति के विशेषज्ञ स्कॉट मूल का कहना है, "यह अमेरिका और मेक्सिको के साथ ही अलग अलग पर्यावरण गुट, किसान, सिंचाई वाले इलाके और इकोलॉजिकल मैनेजमेंट के बीच सहयोग को दिखाता है."