1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

दशकों परेशान करने वाला फाउल

९ अगस्त २०१३

वैसे तो खेल के दौरान फाउल बहुत खतरनाक नहीं दिखा लेकिन इसने जो घाव दिया, वह बहुत बड़ा था. घाव तो फिर भी भर गया लेकिन इस फाउल की वजह से बुंडेसलीगा के दो खिलाड़ियों के मन के घाव भरने में तीस साल लग गए.

https://p.dw.com/p/19N5S
तस्वीर: picture-alliance/Sven Simon

14 अगस्त, 1981 को जर्मन फुटबॉल लीग बुंडेसलीगा के एक मैच के दौरान बीसवें मिनट में ब्रेमेन के वेजर स्टेडियम में दर्शकों की सांस रुक जाती है. बीलेफेल्ड के स्ट्राइकर एवाल्ड लीनन को गेंद मिलती है और वह उसकी तरफ बढ़ता है लेकिन गेंद छिटक जाती है. ब्रेमन के डिफेंडर नॉबर्ट जीगमन लगभग एक सेकेंड बाद वहां पहुंचते हैं और लंगड़ी लगा देते हैं. उनके लिए भी खुद को रोकने का कोई रास्ता नहीं बचा था.

जबरदस्त टक्कर होती है. लीनन अपनी जांघ देखते हैं और दर्द और गुस्से से पागलों की तरह चिल्लाने लगते हैं. वह उठने की कोशिश करते हैं लेकिन दोबारा घास पर गिर जाते हैं. उनकी दाहिनी जांघ चिर गई थी. वहां लगभग 25 सेंटीमीटर लंबा और 5 सेंटीमीटर गहरा घाव हो गया था. उनकी हड्डियां भी साफ दिख रही थीं.

बाद में लीनन ने कहा, "अपनी ही जांघ को खुला देखना बहुत सदमा पहुंचाता है." रेफरी मैदान पर दूसरी ओर था और वह न ठीक से फाउल देख पाया और न घाव. उसने जीगमन को सिर्फ पीला कार्ड दिखाया. हालांकि जीगमन आज भी कहते हैं कि यह एक आम टक्कर थी.

Foul an Ewald Lienen 1981
चोट का दर्दतस्वीर: Getty Images

फुटबॉल या जंग

उन दिनों के हिसाब से शायद यह ठीक है. उस वक्त के रक्षात्मक खिलाड़ी क्रूरता के साथ खेलते थे. उस जमाने के डिफेंडरों के लिए नारे बने थे, "वो आदमी नहीं है, वो जानवर भी नहीं है, वह नंबर 4 है." उस वक्त खेल भावना जैसी चीजें जरा पीछे छूट गई थीं और सबसे अहम खेल का नतीजा होता था. लीनन बताते हैं, "फुटबॉल के मैदान पर जंग होती थी, बिना किसी सम्मान के या खिलाड़ियों की सुरक्षा को ध्यान में रख कर."

उन्होंने इसमें बदलाव लाने का फैसला किया, "मेरे लिए यह मील का पत्थर था. उस वक्त फुटबॉल में हर जगह जो क्रूरता थी, मैं उसके खिलाफ लड़ना चाहता था, उससे सफल बचाव करना चाहता था." लीनन ने अस्पताल में ही तय किया कि वे जीगमन और उनके कोच ओटो रेहागेल पर मुकदमा करेंगे. लीनन का मानना था कि रेहागेल ने ही अपने खिलाड़ियों को खतरनाक ढंग से खेलने के लिए भड़काया है. बीलेफेल्ड के लीनन वैसे भी उस जमाने में दूसरे खिलाड़ियों से हट कर देखे जाते थे. वे लंबे बाल रखते थे, वामपंथी विचारधारा के थे और उन्हें पढ़ा लिखा बुद्धिजीवी समझा जाता था.

मुकदमा तो हुआ लेकिन अदालत ने लीनन के हक में फैसला नहीं किया. सरकारी वकील ने दलील दी थी कि फुटबॉल खेलने वाले हर खिलाड़ी को अच्छी तरह पता है कि वह कभी बुरी तरह जख्मी हो सकता है, जैसे एक मुक्केबाज भी नहीं कह सकता है कि उसके साथ बुरा किया जा रहा है, वैसे ही फुटबॉलर भी ऐसा नहीं कह सकता.

Norbert Siegmann
नॉर्बर्ट जीगमनतस्वीर: picture-alliance/dpa

लीलन उन दिनों की याद करते हैं, "मैं खुश हूं कि उस समय के सरकारी वकीलों का हास्यास्पद और पुरातनपंथी नजरिया माना नहीं गया है और आज हमारे यहां सामाजिक लिहाज से ठीक तरह का फुटबॉल है, जहां इस तरह के लोग और बर्ताव संभव नहीं है."

खून करने के धमकी

लीनन चार हफ्ते बाद ग्राउंड पर लौट आए थे. लेकिन मामला खत्म नहीं हुआ. मीडिया तनी बैठी थी. फैन गुस्से में थे. जब सीजन में दोनों टीमों का दोबारा मुकाबला हुआ, तो बीलेफेल्ड के रेहागल बुलेटप्रूफ जैकेट पहन कर कोचिंग क्षेत्र में बैठे. जीगमन की रक्षा कई साल तक पुलिस को करनी पड़ती है. उन्हें जान से मार देने की भी धमकी मिली. उन्हें "डेयर श्लित्जर" (चीर फाड़ करने वाला) कहा जाने लगा, जिसका लीनन को अफसोस है, "नॉबर्ट उस वक्त सिर्फ एक मुहरा था. उस वक्त किसी दूसरे डिफेंडर के साथ भी ऐसा हो सकता था क्योंकि फुटबॉल उस वक्त ऐसे ही खेला जाता था."

फिर भी लीनन को जीगमन को माफ करने में सालों लगे. लीनन का कहना है, "नॉबर्ट जीगमन ने बहुत जल्दी एक अच्छे खत के साथ मुझसे माफी मांगी. मुझे भी पता था कि उसने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया. मैं उसे पहले से जानता था. लेकिन वह सेकेंड लीग में भी इसी तरीके से फुटबॉल खेलता था. मेरी टीम के खिलाफ भी और दूसरों के खिलाफ भी."

तीस साल बाद जब दोनों मिले, तो माहौल शांत था. जीगमन को भी राहत मिली. वे कहते हैं, "शुरू में मैं उससे मिलना नहीं चाह रहा था. लेकिन फिर भी मैंने ऐसा किया और यह बहुत ही अच्छा था. यह राहत पहुंचाने वाला था."

रिपोर्टः ओलिविया फ्रित्स/एजेए

संपादनः महेश झा

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें