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दलाई लामा को मलाल नहीं

सुनंदा राव, नई दिल्ली१ अप्रैल २००९

तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को 50 साल के संघर्ष के बाद कोई मलाल नहीं है और उन्हें लगता है कि चीनी प्रशासन से उन्होंने जिस तरह निपटा, वही सही रास्ता था. दक्षिण अफ्रीका का वीज़ा न मिलने पर उन्होंने चीन को आड़े हाथों लिया.

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1959 में भारत आए दलाई लामातस्वीर: AP

दलाई लामा ने चीन से अपने निर्वासन के 50 साल पूरे होने पर नई दिल्ली में बाक़ायदा प्रेस कांफ्रेंस की और कहा कि चीन के सिलसिले में उन्होंने जो भी फ़ैसले किए, वह वक्त के साथ सही साबित हुए और उन्हें इसका कोई मलाल नहीं. नोबेल शांति पुरस्कार जीत चुके दलाई लामा ने कहा, "वक्त बीतने के साथ साथ मेरे प्रमुख फ़ैसले सही साबित हो रहे हैं. इसलिए मुझे कोई मलाल नहीं है." 50 साल के संघर्ष के बाद भी दलाई लामा को वह सब कुछ हासिल नहीं हुआ, जो वह चाहते थे.

Kalenderblatt Dalai Lama
दलाई लामा के बचपन का फ़ोटोतस्वीर: AP

दलाई लामा ने उन दो मुद्दों पर भी बात की, जो हाल में सुर्खियों में रहे हैं. एक तो दक्षिण अफ्रीका का वीज़ा न मिलना और दूसरा निर्वासित तिब्बती सरकार के कंप्यूटर सिस्टम की हैकिंग. दलाई लामा ने दावा किया कि चीन के दबाव की वजह से दक्षिण अफ्रीका ने उन्हें वीज़ा नहीं दिया लेकिन इसका फ़ायदा उन्हें ही मिला क्योंकि यह ख़बर सुर्खियों में रही. उन्होंने कहा, "चीनी विरोध से ज़्यादा पब्लिसिटी मिली. मुझे तो चीनी सरकार का शुक्रिया अदा करना चाहिए." दलाई लामा को वीज़ा न दिए जाने के बाद दक्षिण अफ्रीका में नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के सम्मेलन को रद्द कर दिया गया था.

दलाई लामा ने निर्वासित तिब्बती सरकार के कंप्यूटर सिस्टम की हैकिंग पर भी नाराज़गी जताई. उन्होंने कहा कि इससे साफ़ पता लगता है कि हमारे ईमेल को हैक करके उन्हें पढ़ा जा रहा है. दलाई लामा ने इस मुद्दे पर सीधे चीन का नाम नहीं लिया लेकिन उनसे साथ मौजूद निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रधानमंत्री समधोंग रिनपोचे ने इसके लिए चीनी सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया.

Der Dalai Lama trinkt eine Tasse Wasser bei Vortrag in Freiburg
संघर्ष के प्रतीक दलाई लामातस्वीर: AP

दलाई लामा ने ठीक 50 साल पहले चीन से भारत की सीमा पार की थी और भारत में उन्हें और हज़ारों तिब्बलियों को शरण मिली. उस समय वे महज़ 23-24 साल के थे. आज 74 वर्ष के दलाई लामा कहते हैं कि वे भारत की संतान हैं क्योंकि बौद्धधर्म का जन्म भारत में ही हुआ था. उनके अनुसार भारत गुरु है और तिब्बत उसका चेला. दलाई लामा भारत में अपने निर्वासन के 50 साल होने के मौके पर नई दिल्ली के आठ धार्मिक स्थलों पर हए. इस अवसर पर उन्होंने भारत सरकार और भारतीय जनता का आभार व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि, “50 साल से तिब्बती अपने मूल अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं और भारत ने शिक्षा और पुनर्निर्माण में तिब्बतियों की बहुत मदद की है.”

Tibet China Aufstand 1959 Die Chinesen setzen in Lhasa eine neue Regierung ein
1959 की दलाई लामा की एक ऐतिहासिक तस्वीरतस्वीर: picture-alliance / dpa

दलाई लामा ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता और सभी धर्मों के प्रति सम्मान की भारतीय धारणा से उन्हें खास स्नेह है. हालांकि वे मानते हैं, “भारत ही नहीं, अमेरिका को अब इन विषयों पर खुलकर, बेझिझक होकर पूरी निष्ठा के साथ बात करनी होगी.”

आर्थिक मंदी पर नोबेल शांति पुरस्कार विजेता ने कहा, “बाज़ार मनुष्य ने बनाया है और मनुष्य को ही उसे संभालना होगा. लेकिन अब पैसे के व्यवसाय में भी पारदर्शिता, सत्य और निष्ठा की ज़रूरत पहले से कहीं ज्यादा हो गई है.”

चीन के साथ असफल वार्ता के विषय पर तिब्बत के आध्यात्मिक नेता ने कहा कि अब तक जो भी बात हुई है उसनें चीन का नज़रिया अलग है. हाल ही में तिब्बत में जनता के साथ हो रहे बल प्रयोग की खबरों पर उठे सवाल पर दलाई लामा ने चीन से अपील की कि वह अंतरराष्ट्रीय मीडिया को देश में प्रवेश करने दे ताकि निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से रिपोर्टिंग की जा सके.

आखिर में अपने नटखट अंदाज़ में भारत में होने वाले चुनावों के बारे में दलाई लामा ने कहा कि वे भारत की राजनीति से दूर ही रहना पसंद करते हैं और निष्पक्ष होकर हर नेता को अपना आशीर्वाद देते हैं.

सुनंदा राव, नई दिल्ली