जर्मनी में प्रजाति बहुलता खतरे में
जीव-जंतुओं, पेड़ पौधों और फंगस की प्रजातियों की बहुलता जर्मनी में खतरे में है. इन प्रजातियों के एक तिहाई का अस्तित्व मिटने का खतरा है जबकि 4 फीसदी का अंत हो चुका है. प्रजाति संरक्षण का राष्ट्रीय लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है
ठौर खोती चींटियां
चीटियों को हालत खास तौर पर खराब है. जर्मनी में चीटियों की 65 प्रजातियां हैं. कृषि क्षेत्र में रासायनिक खादों के अत्यधिक इस्तेमाल और जंगलों में मृत लकड़ियों में आ रही कमी से उनके रहने का प्राकृतिक वास खत्म हो रहा है. जैव विविधता में चींटियों की अहम भूमिका है क्योंकि वे छोटे कीड़ों को खाती हैं, मृत जानवरों को नष्ट करती हैं और पक्षी उन्हें खाकर जीते हैं.
पोषण के लिए जरूरी वन्यजीव सुरक्षा
खाने के लिए अनाज और साग सब्जी उपलब्ध कराने वाले पौधों के तीन चौथाई हिस्से को परागण की जरूरत होती है. कृषि उत्पादन इस प्रक्रिया पर निर्भर है. यही वजह है कि बहुत से लोग मधुमक्खियों के लगातार मरने से चिंतित हैं. बहुत से विशेषज्ञ इसके लिए खेती में कीटनाशकों के बेतहाशा इस्तेमाल को जिम्मेदार मानते हैं.
जर्मनी से गायब
जर्मनी में वन्यजीवों की प्रजातियां विकास के क्रम में धीरे धीरे खत्म होती जा रही हैं. जंगल में रहने वाले सभी जानवर इससे प्रभावित हैं. लंबे पंखों वाले चमगादड़ इस बीच जर्मनी में खत्म हो चुके हैं और कहीं भी नहीं पाए जाते. इस तस्वीर में दिख रहा चमगादड़ अभी भी बुल्गारिया में पाया जाता है.
लौटा पक्षियों का राजा
जर्मनी की प्रजाति सुरक्षा रिपोर्ट में कामयाबियों की भी चर्चा है. पक्षियों के राजा बाज की तादाद फिर बढ़ रही है. वह मध्य यूरोप के सबसे बड़े शिकारी पक्षियों में शामिल है, लेकिन इंसान द्वारा शिकारी का ही शिकार किए जाने और कीटनाशक डीडीटी का जहर खाने से करीब करीब खत्म हो गया था. अब पानी की बेहतर हुई क्वालिटी से भी उन्हें फायदा हो रहा है.
भेड़िया भी लौटा
जीव-जंतुओं को बचाने के लिए सरकार द्वारा चलाए जा रहे व्यापक सुरक्षा कार्यक्रम से भेड़ियों को फायदा हो रहा है. जर्मनी में जंगलों में शिकार करने वाला यह जंतु पूरी तरह खत्म हो गया था. पहली बार साल 2000 में एक पिल्ले के पैदा होने की पुष्टि हुई. 2014 में जर्मनी में भेड़ियों के कुल मिलाकर 34 झुंड रिकॉर्ड किए गए.
बड़े दिन के लिए क्रिसमस ट्री
प्रजाति सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी समस्या जंगलों में एक ही तरह के पेड़ उगाने की है. इसकी वजह से हरे भरे इलाके खत्म हो जाते हैं, खाद और कीटनाशक जानवरों और पौधों का जीना मुश्किल कर देते हैं. कृषि में प्रचलित आदतों की वजह से प्रजातियों के खत्म होने के ट्रेंड को अब तक रोका नहीं जा सका है.
प्रजाति सुरक्षा के लिए जैविक खेती
जीव-जंतुओं और पेड़ पौधों की प्रजातियों को बचाने के लिए पर्यावरण संरक्षक खेती के तरीकों में बदलाव की मांग कर रहे हैं. सोच में परिवर्तन की मांग करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को उनके उद्यमों को जैविक बनाने में मदद दी जानी चाहिए और यूरोपीय संघ की कृषि नीति को पर्यावरण सम्मत बनाया जाना चाहिए.
प्राकृतिक जंगलों की जरूरत
जर्मनी के बहुत बड़े इलाके में जंगल है लेकिन उनके बड़े हिस्से का व्यावसायिक इस्तेमाल भी होता है. सिर्फ दो फीसदी जंगल सही मायनों में जंगली जंगल हैं जिन्हें अपने सहारे छोड़ दिया गया है. वे ज्यादा पौधों और जानवरों को निवास की सुविधा देते हैं.पर्यावरण संरक्षकों का कहना है कि प्रजाति सुरक्षा के लिए कम से कम पांच प्रतिशत वन को जंगली छोड़ देना चाहिए.
जलवायु परिवर्तन का असर
प्रजातियों की सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन का भी असर होता है. जर्मनी में प्रजातियों की सुरक्षा में फिलहाल जलवायु का कोई बड़ा असर नहीं है. देश की प्रकृति सुरक्षा एजेंसी ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा है कि मौसम में हो रहा बदलाव आने वाले समय में जर्मनी में प्रजातियों के जीवन को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा.
संरक्षण के लिए बुद्धिमानी
आर्थिक और नैतिक कारणों के अलावा प्रजाति बहुलता में लोग सुख और सौभाग्य को भी एक कारक की तरह देख रहे हैं. प्रकृति इंसान को विश्राम और आरोग्य का मौका देती है. शहरों में रहने वाले बहुत से लोग खुद साग सब्जियां उगा रहे हैं, घर के पास बाग लगा रहे हैं और प्रजाति बहुलता का समर्थन कर रहे हैं.