चार्ल्स डार्विन का गालापागोस
२० नवम्बर २०१३1831 में जब चार्ल्स डार्विन इंग्लैंड छोड़ कर समुद्री यात्रा पर निकले तब उनकी उम्र महज बीस साल थी. जहाज बीगल से वह प्रशांत महासागर के गालापागोस द्वीपों पर पहुंचे. यहां उन्होंने कई तरह के पौधों और जानवरों को समझने की कोशिश की. कई सैम्पल्स वह अपने साथ भी ले कर गए. कुछ तीन दशक बाद इन्हीं की मदद से उन्होंने किताब 'द ओरिजिन ऑफ स्पीशीस' लिखी जिससे दुनिया को 'थ्योरी ऑफ एवोल्यूशन' के बारे में पता चला. आज भी गालापागोस के इजाबेला द्वीप पर जैव विविधता देखते ही बनती है, लेकिन मौसमी बदलाव के कारण नाटकीय परिवर्तन हो रहे हैं.
इस ज्वालामुखीय द्वीप पर विशालकाय कछुए रहते हैं जो 170 साल तक जीते हैं. ये कछुए घास और फूलपत्तियां खाकर गुजारा करते हैं. पर जब ये सही मात्रा में नहीं मिलते, तो इन कछुओं का विकास रुक जाता है. कछुओं की तादाद बढ़ाने के लिए चार्ल्स डार्विन फाउंडेशन ने गालापागोस के नेशनल पार्क के साथ मिलकर द्वीप पर कई पालन केंद्र खोले हैं. गालापागोस नेशनल पार्क के निदेशक डैनी रुएडा बताते हैं, "हम पशुओं की प्रजातियों की सुरक्षा करते हुए पूरे इकोसिस्टम की सुरक्षा की ओर बढ़ रहे हैं. गालापागोस के इकोसिस्टम के लिए कछुआ सबसे महत्वपूर्ण जानवर है, क्योंकि वह द्वीप पर घास खाने वाले जानवरों में सबसे प्रमुख है."
पर्यटकों की बढ़ती तादाद
द्वीप पर रहने वाले लोगों की तादाद भी लगातार बढ़ रही है. पिछले 30 सालों में आबादी दसगुना ज्यादा हो गई है. फिलहाल यहां करीब 30,000 लोग रहते हैं. उनके अलावा हर साल करीब दो लाख सैलानी भी यहां आते हैं. वे भी जानवरों की जीवन परिस्थितियां बदल रहे हैं. साथ ही ऊर्जा की जरूरतें भी बढ़ रही हैं.
फ्लोरेना गालापागोस के द्वीपों में सबसे छोटा है. लंबे समय तक यहां ईंधन के लिए डीजल का इस्तेमाल किया जाता था. लेकिन ये अब बीते दिनों की बात हो गई है. फ्लोरेना में अब जनरेटरों को चलाने के लिए बायो डीजल का इस्तेमाल होता है. जर्मनी के विशेषज्ञों ने यहां संयंत्र बनाया है. अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण रक्षा पहलकदमी की मदद से गालापागोस में मॉडल प्रोजेक्ट शुरू किया गया है.
जट्रोफा का कमाल
जट्रोफा पौधे से निकाला गया तेल मेनलैंड से आता है. कार्बन रहित इंधन का यह तरीका दूसरे द्वीपों के लिए भी आदर्श बन सकता है. इसके इस्तेमाल से पहले यहां का पर्यावरण खतरे में था. इस वनस्पति तेल से न सिर्फ बिजली पैदा होती है बल्कि यह इक्वाडोर के मेनलैंड पर अतिरिक्त आमदनी का भी जरिया है.
तटीय प्रांत मनाबी देश के सबसे गरीब इलाकों में एक है. यहां के किसान अब गालापागोस में बिजली बनाने के लिए जट्रोफा के फलों की खेती करते हैं. और जट्रोफा के फलों का इस्तेमाल खाने या चारे के रूप में नहीं होता, इसलिए वह ईंधन बनाने के लिए उपयोगी है. इसके अलावा ये पौधे मोनोकल्चर नहीं होते. लेकिन इसकी खेती करना मुश्किल काम है. हालंकि मुनाफे के लिए किसानों को इतनी मुश्किल उठाने में कोई परेशानी नहीं है.
रिपोर्टः मानुएला कास्पर क्लारिज/महेश झा
संपादनः ईशा भाटिया